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उसी प्रकार गुंथन किया है। भगवान्ने छद्मस्थावस्थामें किसी प्रकारका दोषीला कार्य किया होता, तो भगवान् जरूर फरमाते । लेकिन तेरापंथियोंसे हम पूछते हैं कि-'भगवान्ने अमुक समय, अमुक अकार्य किया ऐसा कहीं पर आपके देखनेमें आया हो तो दिखलाईये । भगवान्ने तो निष्पक्षपाततासे जिसका जैसा कृत्य देखागुण, अवगुण देखा, वहाँ वैसा ही वर्णन किया है। कोणिकके विषयमें भी देख लीजिये।
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कोणिकका जीव, श्रेणिकका पुत्र हो करके उत्पन्न हुआ था । कोणिकने, श्रेणिकके प्रति, जो अविनय किया था, इसका तो पश्चाताप स्वयं कोणिक इस प्रकार करता है:--
"अहो मए अधन्नेणं अपुग्नेणं अकयपुत्रेणं दुकयं सेणियं रायं पियं देवयं अचं नेहाणुरागरतं निलयबंधणं करे"
- (निरयावलीसूत्र-पत्र-२४) ___ कोणिक स्वयं पश्चात्ताप करता हुआ कहता है:- अहो, अधन्य, अपुण्य, अकृतपुण्य ऐसे मैंने दुष्टकृत्य किया, कि स्नेहानुरागकरके रक्त ऐसे देव समान पिता श्रेणिक राजाको निलय (बेडी) बंधन किया ।'
देखिये, कोणिकने स्वयं अपने दुष्कृत्यका-अविनयका पश्चात्ताप किया, यह बात भगवान्ने फरमाई, और गगधर महाराजने गुंथन की । अब विचारनेकी बात है कि-मूलवृत्तान्तके साथमें इस बातका ताल्लुक ही क्या है ? । क्योंकि-आचारांगके पाठको यदि भगवान्का गुणवर्णन ही समझा जाय, तो ऐसा कोई पाठ तेरापंथी दिखा सकते हैं कि, जिसमें भगवान्की भूल दिखलाई हो । जैसा