________________
भूमीका प्रमार्जन करके, उस स्थानपर बैठा। बैठ करके पहा. खलीपूर्वक नमुत्थुणं कहा । कह करके. इस प्रकारको अभिग्रह किया कि-' मैं इस उपसर्गसे मुक्त हो जाऊंगा, तो काउस्सग्ग पारूंगा । नहीं तो मुझको सागारिक, भातपानीका पञ्चखाण है।
अर्हनकने इस प्रकारका अभिग्रह क्यों किया ? इस बातको प्रथम सोचना चाहिये । विचार करनेसे यही मालूम होता है कियहाँपर अनुकंपाके सिवाय और कोई कारण नहीं था । क्योंकिअर्हन्नक स्वयं तो धर्ममें दृढ था ही-इसको किसी प्रकारका भी डर नहीं था । फिर भी अनुकंपाके ही कारणसे इस उपद्रवको दूर करनेके लिये इसने ऐसा किया है । तेरापंथी कहते हैं कि-' अर्हन्नकने अनुकंपा नहीं की।' यह उनकी भूल है । क्योंकि, अगर इसने अनुकंपा नहीं की थी, तो बतावें तेरापंथी, इस उपद्रवके होनेके पश्चात् इसको ऐसा अभिग्रह करनेका कारण ही क्या था ? |
खैर, तिसपर भी 'तुष्यतु दुर्जनः ' न्यायसे यह मान लें कि-अर्हन्नकने अनुकंपा नहीं की, तो यह कहना होगा कियहाँ अनुकंपा करनेका कोई कारण नहीं था। क्योंकि-अर्हनक यह जानता था कि-'यह मेरी परीक्षा करनेको आया है । और इससे कुछ होनेवाला भी नहीं है। और इसीसे तो अर्हनक, देवताके उपद्रवको देखकर अपने मनमें विचार करता है:
" अहण्णं देवाणुप्पिया अरहण्णए णामं समणोवासए अभिगयजीवाजीवे णो खलु अहं सका केणई देवेण वा दाणवेण वा जाव निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा तुमण्णं जा सदा तं करेही तिकट्ट अभीए