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लेकिन नहीं, यह अनुकंपा आज्ञा बाहर नहीं है । क्योंकि माताका यह उचित कर्तव्य ही है। और यदि इस उचित कर्तव्यको न करें, तो प्राणघातका महान् पातक लगनेका भय है। ___ हाँ, यह बात जरूर है कि-यह पक्षपाती अनुकंपा है। क्योंकिकलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यने, अनुकंपाकी व्याख्या करते हुए, यह स्पटीकरण किया है कि-" अनुकंपा दुःखितेषु अपक्षपातेन दुःखप्रहागेच्छा । पक्षपातेन तु करुगा स्वपुत्रादौ व्याघादीनामप्यस्त्येव " ( योगशास्त्र, द्वितीयप्रकाश, पृ० १८२ ) परन्तु इससे यह नहीं कहा जा सकता है कि-यह पक्षपाती अनुकंपा आज्ञा बाहर है। यदि यह अनुकंपा आज्ञा बाहर होती तो संसारमें कोइ भी धर्मात्मा स्त्री ( तीर्थकरकी माता जैसी ), अपने गर्भकी रक्षा करनेके लिये प्रयत्न करती ही नहीं। ऐसी अनुकंपा पक्षपाती होने पर भी कर्तव्य स्वरूपा, अर्थात् करने लायक ही है। न कि उपेक्षा करने लायक । क्योंकि, इस अनुकंपाके प्रति उपेक्षा करनेसे जीवहत्याका पातक लगनेको भय रहता है । ___ कई तेरापंथी यह भी कहते हैं कि-" धारिणीको अकाल वृष्टि होनेका दोहला उत्पन्न हुआ। और उस दोहलेको पूरी करनेके लिये, अभयकुमारने देवताकी आराधना कर, अनुकंपासे "अकाल वृष्टि करवाई, यह भी जिनाज्ञा बाहर है " । परन्तु यह
भी ठीक नहीं है। क्योंकि अभयकुमारका यह कर्तव्य था किकिसी भी प्रकारसे माताका दोहद (विचार) पूर्ण करना । इसी कर्तव्यको पालन करनेके लिये, अभयकुमारने भक्ति स्वरूपा अनुकंपा की है, तो यह जिनाज्ञा बाहर नहीं हो सकती । हम पूछते हैं कि जब तीर्थकर, माताके गर्भ में आवे , तनकी
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