Book Title: Terapanthi Hitshiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 168
________________ ♦♦♦—*** ̄***O❖❖* ̄***O*** ̄*** ̄***0*$$0$$$066606644 OSC ♦♦♦♦♦♦♦♦0$$$0♦♦♦ मनमाने ये भेद दिखाकर, मूलतत्त्व उठवाया है, ऐसे तेरापंथ मजबनें, जगमें ढोंग मचाया है ॥ ३९ 46 “ नेमनाथने पशुओंकी रक्षा की है भावी दुखसे, " धर्मरुचीने जीव बचाये, भाविकालमें मरनेसे । " “ मेघकुमरने ससलेको भी इसी प्रकार रखाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ॥ " " ४० वे अनुकंपा जिन आझामें, इनको आज्ञा रहित गिने:“ हरिकेशी पर भक्ति जगाकर, यक्ष, शरीर प्रवेश करे । " धारिणिने अनुकंपा लाकर इच्छित भोजन खाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ॥ 99 " ४१ " हरिणिगमेषी देव, दयासे षट् पुत्रोंको लाया है, " “ अनुकंपासे ही जिनवरने, मेखलिपुत्र बचाया है । 99 46 " “ हरिका ईंट उठाना, ” “ सुरने जलधरको बरसाया है ' ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ।। ४२ क्या अनुकंपा हो सकती है, प्रभु आज्ञासे रहित कभी ? दुःखनाशकी इच्छा तो रखते हैं, मानवमात्र सभी । फिर भी इसको नहीं मानते, यही इन्होंकी माया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ।। १ गोशाळा. 40. *O***0***0$$$0$. (१०) *** ̄*** ̄*** ̄*** ̄***—***C***C***C*** ̄*** ̄******* ****

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