Book Title: Terapanthi Hitshiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 180
________________ पास इन्हींके बैठ मजेसे भोजनको करवाती हैं। ललनाओंका ढेर हमेशा, दिनभर पास जमाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है। एक दिवसके अन्तरसे, उस घरमें भिक्षा जाते हैं, ___हलवा-पूरी और रायता, सब कुछ ही ले आते हैं। आषाकर्मी दोष न देखें, सबको इसने खाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है । कच्चा पानी पिएं राखका, जो सूत्रोंमें नहीं कहा, ___ बरतणके धोअणको लेलें, जिसमें हैं उच्छिष्ट भरा । ऐसे करनेसे अपने पर 'म्लेच्छ ' कलंक लगाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है । ९३ अजब बात, रखते ही नहि हैं, रात्रिसमयमें पानीको, करते क्या होंगे यह सोचो, जब जावें वे जंगलको ? । अशुची रखनेका तो देखो, दंड निशियमें आया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है । 0000000000000000000000000000000000... 'रजस्वला' यह धर्म न माने, मानें फोड़ा फूटा है, उससे भी भिक्षा मंगावें, सब कुछ इसको छूटा है। करुं कहाँ तक श्लाघा इसकी ? धर्म-कर्म सब खोया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है । १ रजस्वलावाली स्त्रोसे। * (२२)

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