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गिमा जा सकता है । अतएव तेरापंथी जो अर्थ करते हैं, वह बिलकुल असंगत ही है।
अब एक और बात देख लीजिये । निशीथसूत्रके बारहवें उद्देशे में इस प्रकारका पाठ है: -
"जे भिक्खू कोलुणपडियाए अणयरं तसपाणजायं तणपासरण वा मुंजपासएण वा कट्टपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुतपासएग वा बंधइ बंधतं वा साइज्झइ, जे भिक्खू बंधेलयं वा मुयइ मुयंत वा साइज्झइ___ इस पाठको लेकरके तेरापंथी कहते हैं कि- करुणा ( अनुकंपा ) करके किसी त्रस जीवको बांधे-बंधावे और बांधतेको अच्छा जाने, उसको चौमासी प्रायश्चित्त आवे, और अनुकंपासे छोडे-छोडावे और छोडतेको अच्छा जाने, उसको भी चौमासी प्रायश्चित्त आवे, ऐसा सूत्रमें कहा है ।" ... ___ प्रथम तो तेरापंथी 'कोलुणपडियाए' का अर्थ ही नहीं समझे हैं । और दूसरे साधुके लिये यह प्रसंग कत्र संभवित हो सकता है, इसको भी नहीं विचारा है। अस्तु, पहिले उपर्युक्त पाठके अर्थको देख लीजिये । उपर्युक्त पाठका अर्थ यह है:___“जो कोई साधु, कोलुणपडियाए अर्थात् कारुण्यप्रतिज्ञासे
अन्य त्रस प्राणीकी जातिको, तृणके बंधसे, मुंजके बंधसे, काष्टके बंधसे, चमडेके बंधसे, वेत्रके बंधसे, रज्जुके बंधसे, अथवा सूत्रके बंधसे बांधे, अथवा बांधनेवालेको सहायता करे तो, एवं बांधे हुए को छोडे अथवा छोडनेवालेको सहायता करे तो चौमासी प्रायश्चित्त आवे।" __ अव्वल तो तेरापंथी उपर्युक्त पाठका अर्थ ही झूठा करते हैं । क्योंकि-उपर्युक्त पाठमेंसे यह नहीं निकलता है कि-" बांधे