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"पाका वडा अणारिपाणिविणा किरा" इससे भी सिद्ध हुआ कि-आर्य पुरुष, अनुकंपीसे रहित नहीं हो सकते । कहिये, इससे बढकर और क्या कहा जा सकता हैं ?।
हम दावेके साथ कह सकते है कि-चाहे पैंतालीस आगमाको देख लीजिये, चाहे बत्तीस, लेकिन किसी स्थानमें अनुकंपाका निषेध नहीं देखने में आवेगा।
इन आगमोंको ही क्यों ? हम पहिले कह आये हैं, उसी तरह संसारके समस्त धर्मके, धर्म ग्रन्थों को देख लीजिये, किसी मेंसे यह नहीं पाया जायगा कि-'जीवोंकी रक्षा नहीं करनी चाहिये-'जीवों पर दवा नहीं करनी चाहिये-'जीवोंको नहीं बचाना चाहिये। यदि ऐसे ही सिद्धान्त संसार में प्रचलित होते आज संसारमें मनुष्य, मनुष्य ही नहीं कहे जाते, किन्तु उनका कुछ और ही नाम होता।
हम कहते हैं कि-सूत्र--सिद्धान्तोंके उन गूढ रहस्यों को जाने दीजिये, हमारे. तत्त्ववेत्ताओंने-ऋषि-महर्षियोंने, उन रहस्योंका भी मक्खन निकालकर, हमारे सामने जो सुभाषित रक्खे हैं, उन्हीपर हम ख्याल करे, तो हमें मालूम हो सकता है कि-अनु. कंपा क्या चीज हैं ? वह हमें करने लायक है या नहीं ?। देखिये, एक जगह कहा हैं:
“ विद्या विवादाय धन,मक्षाय, - शनि परेषां परिवीडनाय। खलस्य साधोविपरीततिः , ...
बामाय दानाय च रक्षणाय" ॥ १ ॥
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