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भीखमजीकी बुद्धिकी हम कहाँ तक तारीफ करें ? | जिनमें इ. तनी भी समझनेकी शक्ति नहीं है कि-लायको क्यों बुझाई जाती है,
और कसाईको क्यों नहीं मारा जाता है ? । लायको बुझाने में एकेन्द्रियजीवोंकी विराधनाके सिवाय अन्य कौनसा नुकसान है ? । परन्तु कसाईको मारनेमें पंचेन्द्रिय मनुष्यके मारनेका महान् पाप लगता है। हम तेरापंथियोंसे पूछते हैं कि क्या एकेन्द्रियजीवोंके
और पंचेन्द्रियजीवोंके पुण्य एक समान हैं ? । क्या एकन्द्रियजीवोंकी विराधनामें और पंचेन्द्रियकी विराधनामें समान पाप लगता है?। यदि ऐसा ही सिद्धान्त है तो फिर तुम्हारे श्रावक अन्नको क्यों खाते हैं ? । पंचेन्द्रियजीवोंको ही क्यों पका पका कर नहीं खाते । क्योंकि-तुम्हारे हिसाबसे तो एकेन्द्रिय-पंचेन्द्रिय समान ही हैं। और इस हिसाबसे तो हस्तितापसों जैसी प्रवृत्ति करनी पडेगी । खैर, इस निर्दयताके ऊपर हम विशेष लिखना नहीं चाहते, सिर्फ एक दृष्टान्तको ही लिख कर इसका उत्तर मांगना चाहते हैं । ... हम तेरापंथियोंसे पूछते हैं कि-तुम्हारे किसि साधुके पास, एक मनुष्य ऐसा आया कि, जो हमेशा कंदमूलको खाता है, और रोज सौ सौ बकरोंको भी मारता है । वह आ करके कहे कि-' आप मुझे दोनोंमेंसे एक सोगन दीजिये । यातो कंदमूल खानेकी कसम दे दीजिये, अथवा तो सौ बकरों मारनेकी कसम दे दीजिये । अब बतलाईये, तुम्हारे साधुजी किस बातका सोगन देंगे ? । कंदमूल नहीं खानेका, या कि बकरोंके, नहीं मारनेका? । इसका जवाब दें। ___ आगे चल करके पांचवीं ढालमें, एक यह भी विचारणीय बात कही हुई है कि-' द्रव्य देकरके किसीके प्राण न बचाने चाहिये, और जीव मार करके जीव न बचाने चाहियें।' जैसे: