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लेकिन इस कार्य को, भीखमजीने राजनीतिमें दिखलाया है, धर्ममें नहीं। इसमें कई एक कुतर्क भी किये हैं कि- अगर धर्म होता तो अन्य चक्रवादि राजाओंने अमारी पटह क्यों नहीं बजवाया ? ' वगैरह ।
भीखमजीकी बुद्धिका परिचय ऐसी बातोंमें खूब ही मिल जाता है । क्योंकि-भीखमजीको अभी तक यह भी मालूम नहीं है कि-अमारी पटह बजवाना, यह राजाओंके लिये राजनीतिका विषय नहीं है, किन्तु धार्मिक बात है। धार्मिक बातोंके लिये यह नहीं कहा जा सकता है कि- "अमुकने यह कार्य किया, तो औरोंने क्यों नहीं किया ?'
अगर ऐसा नहीं है, तो हम पूछते हैं कि तुम्हारे मज हबमें इतने ही साधु-साध्वी क्यों है ? जितने पुरुष स्त्री हैं, वे सभी साधु-साध्वी क्यों नहीं हो जाते ? ।
अच्छा, अब तेरापंथी इस अमारी पटहके कार्यको राजनीति स. मझते हैं, यह उनकी बडीभारी भूल है । यदि यह राजनीतिका कार्य होता तो, सभी राजाओंने इस कार्यको करना चाहिये था ।
और किया तो नहीं है, तो फिर इसको राजनीति कैसे समझी जाय । तेरापंथी क्यों भूलते हैं ? । महाराजा कुमारपालने, क्या कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्य के उपदेश से, अपने राज्यमें जीवहिंसा नही बंध करवाई थी ? । मुसलमान पादशाह अकबरने जैनाचार्योंके उपदेशसे क्या एक सालमें छे महिनो तक हिंसा नहीं बन्द की थी ?। क्या इन कार्योंको तेरापंथी, राजनीति समझेंगें? यह कभी नहीं हो सकता ? । अमारी पटह बजवाकर जीवहिंसा बन्द करवाना यह धर्मकार्य ही है। देखिये प्रश्नव्याकरणसूत्रके पृष्ठ ३३५ से ३३९ में