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... देखिये, भीषममीका पूर्वापर विरोध । अब, इसके लिये क्या . कहा जाय, जिसके वचनका ही ठिकाना नहीं है । ___ तेरापंथियोंका एक यह भी कहना होता है, कहना क्या होता है, भीषमजीने लिखा भी है कि यदि कोई मनुष्य, किसी जीवको मारता हो, तो उसको द्रव्यादि दे करके छोडाना तो दर किनार रहा, किन्तु 'मतमार' ऐसा भी नहीं कहना चाहिये । अब बतलाईये । यहाँतक जिसका उपदेश है, उसको क्या कभी मजहब कह सकते हैं ।
अच्छा, और देखिये । आठवी ढालमें कहा है:." पहिली हिंस्या कीयां पछे धरम बतावै ।
तो कुगुरुवाणी, जेहवी वेहती घाणी" || यां० ॥२०॥ भीखमजीके कहनेका मतलब यह है कि जिस धर्मके कार्यमें पहिले हिंसा होती हो, तो उस धर्मके कार्यको भी अधर्मका ही समझना चाहिये । हम तेरापंथी साधुओंसे पूछते हैं कि आप लोग जितनी क्रियाएं करते हैं, उन सबमें जीवविराधना-हिंसा होती है कि नहीं ? | अगर होती है तो फिर उन सब कार्योंको अधर्मके कार्य क्यों नहीं कहते ? । तुम्हारे श्रावक लोग, दूरदूरसे अनेक प्रकारके आरंभ समारंभोंके साथ तुम्हारे पूज्यको बंदणा करनेके लिये जाते हैं, उसको भी अधर्मका कार्य क्यों नहीं समझते ? । अनेक प्रकारकी हिंसा करके पाट महोत्सव करते हो, उसको भी अधर्म क्यों नहीं समझते ? बल्कि हम तो यहाँ तक कहते हैं कि-आपको, व्याख्यान वांचना, प्रतिक्रमण पडिलेहण करना, गुरु वंदन करना, गोचरी जाना, ठंडील (जंगल) जाना, उन सभी कार्योको छोड करके एक जगह पर चुपचाप बैठ जाना