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"तएणं समणे भगवं महावीर माउय अणुकंपणट्टयाए णियले णिफंदे णिरेयणे अल्लाणपल्लीणगुत्ते आवि होत्था" ॥ ९१ ॥
. (पत्र-११४) यहाँपर अंगोगंगोंको गोपनकरने-निश्चल, निमंद होने में मातकी अनुकंपा ही कारण लिखा है । तो कहना होगा कि-यहाँ अनुकंपाका अर्थ भक्ति करनेका है। और टीकाकारोंने भी 'मातुर्भक्त्यर्थम् ' यही अर्थ किया है। . __जिस समय हरिणैगमेषी देवने इन्द्रकी आज्ञासे, गर्भापहरण किया है, उस समय भी 'हिआणुकंपण्णं' अर्थात् 'हितानुकंपकेन भगवतो भक्तेन' कहा है। यहाँ पर भी ' अनुकंपा ' से भक्ति अर्थ लिया है।
इसी प्रकार, अनुकंपाका ‘भक्ति' अर्थ बहुत जगह होता है । क्योंकि कहा भी है कि:
"आयरिअणुकंपाए, गच्छो अणुकंपिओ महाभागो। गच्छाणुकंपणाए, अमुच्छित्ती कया तित्थे " ॥१॥
(धर्मसंग्रह, पृ०२३०) अर्थात्-आचार्यकी अनुकंपासे, महाभाग गच्छ भी अनुकंपित ही है । और गच्छ की अनुकंपासे, तीर्थ कदापि व्युच्छिन्न नहीं होता है। ___ कहनेका मतलब यह है कि-ऐसे प्रसंगोंमें जो 'अनुकंपा' शब्द आया उसका अर्थ 'भक्ति' करनेका है। और यह उचित भक्ति होनेके कारण इसको आज्ञा बाहर कभी नहीं कह सकते । क्योंकि-उचित कार्योंके करनेका तो शास्त्राकारोंका फरमान ही है।