________________
१०५
" संपत्तबहुगुणोवि हु जो न मुणइ सम्ममुचियमायरि । सलहिज्जइ सो न जणे ता मुणिऊणं कुणह उचियं " ॥१॥
(श्राद्धगुणविवरण, पत्र-४७) अर्थात्-जो मनुष्य, सम्यग् प्रकारसे उचित आचरणको नहीं करता है, वह बहुगुणोंको धारण करते हुए भी, श्लाघाको प्राप्त नहीं कर सकता। अतएव उचिंत कर्तव्यको अवश्य करना चाहिये। ___ अभयकुमारका यह उचित कर्तव्य था-भक्तिस्वरूपा अनुकंपा थी, इस लिये, यह जिनाज्ञा बाहर कभी नहीं हो सकती। . अब रही कृष्णने की हुई, वृद्धकी दयाकी बात । यह भी आज्ञा बाहर नहीं है। क्योंकि-एक वृद्ध पुरुष ईंटें उठा उठा कर ले जा रहाथा, उसको देख कर कृष्णको दया आई है । और इस दयाके कारण उसको सहायता की है। क्या ऐसे दुःखी मनुष्यको सहायताका करना अनुचित था, जो इस दयाको हम आज्ञा बाहर कहें ? । क्या इस प्रसंगमें कहींपर यह लिखा हुआ दिखा सकते हैं कि-'इसको आज्ञा बाहर कहना,' अथवा 'यह अनुचित कार्य था ? ।' कहीं नहीं । बल्कि-सूत्रमें तो यही मिलता है कि जिस समय, कृष्णजी भगवान्के पास गये, उस समय भगवान्ने यही कहा है कि-" हे कृष्ण ! जैसे तुम्हारी सहायतासे, उस वृद्ध पुरुषकी शीघ्र कार्य सिद्धि हो गई, वैसे ही सोमलकी सहायतासे गजसुकुमालकी मोक्षप्राप्तिरूप कार्य सिद्धि शीघ्र हुई है। ____ अब विचार कीजिये, अगर कृष्णका सहायता करना अनुचित होता तो, भगवान् इस कार्यका जिकर करते हुए, योंही कह देते कि-' तुमने रास्तेमें आते हुए वृद्धपुरुष पर उपकार किया