________________
८७
लें । जहाँतक ' दया' का नाम लेते रहेंगे-जीवोंके बचानेके इरादेसे क्रियाएं करते रहेंगे, वहाँतक जीवोंका जीना नहीं चाहते' यह कथन वाणीमात्रमें ही समझा जायगा।
आगे चलकर इसी दूसरी ढालमें कई प्रसंगोका विना समझे ही उल्लेख किया है । जैसे:
" चंपानगरीके वणिकोंका दृष्टान्त देकर, देवताके उपद्रव होनेपर भी अर्हन्नकश्रावकने अनुकंपा नहीं की, ऐसा दिखलाया है।' 'नमिराजऋषिने, इन्द्रके कहनेपर भी जलती हुई मिथिलाके सामने महीं देखा ।' 'केशवके बन्धु गजसुकुमालके सिरपर सोमलने मिट्टीकी पाल बांधी और अंगारे भरे, परन्तु श्रीनेमनाथजीने अनुकंपा नहीं की। ' ' भगवान् महावीर स्वामीको देव-मनुष्य और तिर्यचोंने अनेकों प्रकारके उपसर्ग किये, परन्तु कोई भी इन्द्र, इन उपसर्गोको दूर करने के लिये आया नहीं । ' ' सारे द्वीप-समुद्रोंमें मच्छ गलागल हो रही है, अगर भगवान् इन्द्र को कहते तो शीघ्र वह मिटा सकता था, परन्तु भगवान्ने इन्द्रको भी नहीं कहा ।' 'चुलणीपियाने पौषध किया, उस समय देवताने आकर अनेक कष्ट दिये, उसके पुत्रोंको, उसके सामनेही तेलमें तले, परन्तु चुलणीपियाने अनुकंपासे उनको बचानेके लिये नहीं कहा ।' चुलणीपिया, जब अपनी माताको बचानेके लिये गया, उस समय उसका व्रत भांगा।'' चेडा और कोणिककी लडाईमें एक कोड अस्सीलाख मनुष्य मरे, लेकिन भगवान्ने, अनुकंपा ला करके उनको बचानेके लिये न आप पधारे, और न अपने साधुओंको भेजे । और लडाई होनेके पहिले भी मनाई नहीं की।' 'समंदपालको, (समुद्रपाल) चोरके देखनेसे उत्कृष्ट वैराग्य उत्पन्न हुआ, परन्तु उसने चोरपर करुणा नहीं की।"