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- " तए गं से अरहणणए समालोवासए मिरुसवेतिक पडिम पारेइ नएणं अरहण्णगपामोक्खा जायवाणियगा दक्खिणाकुलेणं वाएणं जेणेव गंभीरपोयपट्टणे तेणेव उवागच्छह-"
(पृष्ठ ७७३-५७४ ) अर्थात्-इसके बाद अर्हनक श्रावकने, निरुपद्रव हो करके काउस्सगको पारा, पश्चात् अर्हन्नक प्रमुख वणिक् दक्षिणदिशाके अनुकूल वायुसे जहाँ गंभीरपोतपट्टन है, वहाँ आते हैं ।
इससे सष्ट जाहिर होता है कि-उन वणिकोंको कुछ भी हानी नहीं हुई है। अब यहाँपर अनुकंपा करनेका कारण ही क्या है, जो तेरापंथी लंबी २ कुलाँचे मारते हैं ? । ___ हमारा तो यह भी कहना है कि- अनुकंपा भी की जाती है, तो वह अपने धर्मकी रक्षा पूर्वक की जाती है । अनुकंपा ही क्यों ? जितने संसारमें अच्छे कार्य हैं; वे भी, अपने धर्मको रख करके ही किये और कराये जाते हैं। हम पूछते है कि तेरापंथीके साधुको कोई यह कहे कि-' आप एक घंटेभरके लिये मेरी पघडी पहनलें, तो मैं लाख सामायिक करूं'। क्या तेरापंथीके साधुजी इस कार्यको करना मंजूर करेंगे ? अथवा कोई गृहस्थ, तेरापंथी साधुसे यह कहे कि-' आप एक ही साधु गृहस्थ बन जाँय, तो, हम सौ आदमी दीक्षा लें।' क्या तेरापंथीके साधु इस बात को स्वीकार करेंगे ? । अथवा एक ऐसा ही रष्टान्त ले लीजिये कि, जैसे कोई स्त्री तुम्हारे साधुजीसे यह कहे कि-'आप मुझसे विषय सेवन कीजिये, नहीं तो मैं मर जाऊंगी'। कहिये साधुनी इस बातको स्वीकार करेंगे ? । कभी नहीं । इससे स्पष्ट जाहिर होता है कि-अनुकंपादि अच्छे कार्य भी स्वधर्मकी रक्षापूर्वक ही किये जाते हैं ।