________________
उस समय, इन्द्रने आकरके प्रार्थना की है कि 'हे भगवन् ! आपको बारह वर्ष पर्यन्त उपसर्ग होनेवाले हैं, इस लिये मैं उनको निवारण करनेके लिये आपकी सेवामें रहूँ ।' भगवान्ने उस समय साफ साफ कह दिया है कि-' अर्हन् दूसरोंके सहायकी जरासी भी अपेक्षा नहीं रखते ।' देखिये, कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य, अपने योगशास्त्र के प्रथम प्रकाशमें इसी मनलबको कहते हैं: —
" ततः प्रदक्षिणीकृत्य त्रिमूर्धा प्रणिपत्य च । इति विज्ञापयाञ्चक्रे प्रभुः प्राचीनवर्हिषा " ॥ ७३ ॥ · " भविष्यति द्वादशाब्दान्युपसर्गपरम्परा ।
तां निषेधितुमिच्छामि भगवन् पारिपार्श्विकः " ॥ ७४ ॥ " समाधिं पारयित्वेन्द्रं भगवानूचिवानिति । नापेक्षाञ्चक्रिरेऽन्तः परसाहायिकं क्वचित् " ॥७५॥
:
(पृष्ठ - १० )
इन श्लोकोंका सार ऊपर देही दिया है । इस परसे स्पष्ट जाहिर होता है कि भगवान् किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं रखते हैं। हां, यहाँपर अनुकंपाका विषयतो तब गिना जाता, जब कि - भगवान्ने इन्द्रकी सहायता चाही होती, और इन्द्रने, अनुकंपाने पाप समझ करके मूँह मोड लिया होता । लेकिन यह तो हुआ नहीं । इन्द्र तो भक्ति करने के लिये आया ही था, और भगवान्ने, अपने ही पुरुषार्थसे कर्मक्षय करनेके लिये इन्द्रको निषेध कर दिया था। फिर इस प्रसंगकी यहाँ आवश्यकता ही क्या थी ? |
सारे द्वीपसमुद्रोंमें, मच्छगलागल हो रही है, उसको बंध करनेके लिये भगवान्ने इन्द्रको नहीं कहा, इसमें भी यही कारण