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है कि-भगवान् भाविभावको सम्यक्प्रकारसे जानते. थे, और तदनुकूल ही उनकी प्रवृत्ति होती थी। भाविभावमें, अर्थात् जैसी होनहार है, उसमें जरासाभी फर्क, कोई नहीं करसकते । हम लोग छमस्थ होनेके कारण भविष्यमें इसका क्या होगा ? यह ज्ञान नहीं होने के कारण, हमें प्रत्येक कार्योंमें प्रवृत्ति करनी पडती है । यदि हमारेमें भी भावीपदार्थ के यथार्थ जाननेका ज्ञान हो जायगा, तब, हम भी तदनुकूल ही प्रवृत्ति करेंगे । और यदि होनहार को भी तीर्थकर भगवान् अन्यथा कर सकते हों, तो, हम तुमसे पूछते हैं कि__ वर्तमान समयमें महाविदेह क्षेत्रमें श्रीसीमंधरस्वामी बिराजमान हैं । यदि सीमंधरस्वामी इस बातको चाहें, कि-इन्द्रको कह करके संसारमेंसे मिथ्यात्वको मिटा देना चाहिये, तो मिटा सकते हैं । और इस बातको तो आप लोग भी अच्छा समझते हैं। फिर भी यह बतलाईये कि-श्रीसीमंधरस्वामी ऐसा क्यों नहीं करते ? ।
चुलणीपिताका दृष्टान्त भी. तेरापंथियोंने बेसमझसे ही दिया है । चुलणीपिता श्रावकने जब पौषध किया है, तब रात्रिके समय एक देवता उसकी परीक्षा करनेको आया है । देवताने साफ २ कह दिया है कि-'तू अपने धर्मको छोड दे, नहीं तो मैं तेरे पुत्रोंको मारूँगा।' इतना ही नहीं, चुलणीपिताकी धर्मदृढताको देख, इसको चलायमान करनेके लिये, उसके तीन पुत्रोंको लाकर मारते हुए भी दिखाए । तिसपर भी वह चलायमान नहीं हुआ। अन्तमें जब देवताने चुलणीपिताकी माताको मारनेका डर बताया, उस समय माताके मोहसे, उसने कोलाहल कर दिया । और इसको सुन माता, पौषधशालामें आई।