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- . उपर्युक्त सारे प्रसंग भोले लोगोकों भ्रमित करने के लिये ही तेरापंथियोंने दिए हैं । वास्तवमें इन प्रसंगोंमें जो हकीकतें बनी हैं, उन बातोंको तेरापंथियोंने छिपाई हैं। अच्छा, एक एक प्रसंगको अनुक्रमसे देख लीजिये ।। __ज्ञातासूत्रके ८ वें अध्ययनमें अर्हनक श्रावककी कथा चली है। अर्हन्नक चंपानगरीके कई वणिकोंके साथ नावको लेकर देशान्तरोंमें जा रहा है। देवता उसकी धर्म दृढताकी परीक्षा फरनेको आया है । देवताके किये हुए पिशाचरूपसे अर्हनकको छोडकर सभी वणिक् डर गये हैं । अर्हन्नकने विचार किया कि'इस उपद्रवको दूर करनेके लिये कोशिश करनी चाहिये।' ऐसा विचार करके __“ तएणं से अरहण्णए समणोवासए तं दिव्वं पिसायरूवं एज्जमाणं पासइ २ ता अभीए अतत्थे अचलिए असंभंते अणाउले अणुम्बिग्गे अभिण्णमुहरागणयणवण्णे अदीणविमणमाणसे पोयवाहणस्स एगदेसंसि वत्थं तेणं भूमि पमज्जइ २ ता ट्ठाणं टायइ २ ता करयलजाब तिकट्ट एवं वयासी णमोत्थुणं अरिहंताणं जाव ठाणं संपत्ताणं जइणं अहं एतो उवसग्गओ मुंचामि तो मे कप्पइ पारित्तए अहणं जइणं अहं एतो उवसग्गाओ ण मुंचामि तो मे तहा पञ्चक्खाएयव्वं तिकट्ट सागारभत्तं पञ्चक्खाइ । " ( पृ० ७६०-७६१ ) __ अर्थात्-अर्हन्नक श्रमणोपासकने, उस देवके पिशाचरूपको आते हुए देखा। देख करके, अभीत-अत्रसित-अचलित-असंभ्रान्त-अनाकुल-अनुद्वेग, तथा मुखकी आकृति और नेत्रोंका वर्ण बदला नहीं है एवं अदीनमन हो करके, नाव के एक देशमें जाके वस्त्रसे