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कि- कोणिकका अविनय जाहिर किया । कोणिकका ही क्यों, खुद भगवान्के प्रथम गणधर श्रीगौतमस्वामीकी ही भूल जाहिर की है, तो फिर औरों की बात ही क्या ? केवली भगवान् के पास किसीका पक्षपात नहीं था |
कहने का तात्पर्य यह है कि-सूत्रोंमें जो कुछ वर्णन है, वह गणधर महाराजने अपने आपसे गुंथन नहीं कर दिया है। भगवानने जैसा फरमाया वैसाही गुंथन किया है । फिर भगवान् ने जैसे गुण दिखलाये, वैसे गुग, और अवगुण दिखलाये वैसे अवगुण | और ये भी भगवान्ने केवली अवस्थामें ही प्रकाशित किये हैं, इसलिये इनकी सत्यतामें अणुमात्र भी संदेह लाया नहीं जा सकता । अब भगवान्की निर्दोषता जैसे सूत्रोंमेंसे मिलती है, वैसे किसी जगह भगवान् के चूकनेका वृत्तान्त देखने में नहीं आता, इससे स्पष्ट मालूम होता है कि - तेरापंथियोंका, क्या महादेवीसे - अनुकंपा से द्वेष होनेके कारण ही भगवान् के ऊपर ऐसा असद्भूत कलंक उन्होंने लगाया है ।
तेरापंथी कहते हैं कि- “ भगवान्ने गोशालेको बचाया, इसमें फायद। क्या निकाला ? । गोशालेने और मिध्यात्व बढाया, और भगवान्को लोहीठाणा हुआ । गोशाला मरता तो दोनोमेंसे एक भी बात न होने पाती ।
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तेरापंथियों का यह नियम यदि ठीक २ ही है, तो पहिले तो उन तेरापंथियोंको ही चाहिये कि मरते हुए माता-पिताओं को या लडके लडकियोंको न बचावें । क्योंकि वे भी तो जी करके अवश्य पाप करेंगे ही ।