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रहा है, तो उसको उठानेकी कहीं भी मना नहीं । हमारे साधुओंका हृदय, तेरापंथियोंके जैसा निर्दय नहीं है, कि-वे अपने सामने पडे हुए दुःखी जीवको, अपने धर्मकी रक्षापूर्वक, बचानेका प्रयत्न न करें।
तेरापंथी कहते हैं कि___ " मुसादिकने बचावता जी पिनकीने दुःख थाय"
अर्थात्-"बिल्ली चूहेको पकडती हो, तो उस समय यदि चूहेको बचाया जाय, तो बिल्लीको जरूर दुःख होगा । इस लिये उसको नहीं बचाना चाहिये । क्योंकि उसके भोजनमें अंतराय होगी। दूसरा यह भी कहते हैं कि-चूहेको बचानेसे चूहेपर राग और बिल्लीपर द्वेष होगा, इस लिये ऐसे राग-द्वेषका कार्य नहीं करना चाहिये।"
चूहेके नहीं बचानेमें तेरापंथियोंकी, ये दोनों युक्तियाँ निरर्थक ही हैं । देखिये । प्रथम तो बिल्लीको दुःख होनेका कहना ही मूठा है । मनुष्य चूहेको बचावेगा, वह इस अभिप्रायसे नहीं बचावेगा कि, मैं बिल्लीके भोजनको छीन कर उसे कष्ट पहुँचाऊं । चूहेको बचानेवालेका अभिप्राय जीवके बचानेका और बिल्लीको अधिक पापके करनेसे अटकानेका ही है । जैसे, एक विषमिश्रित दूधसे भरा कटोरा पडा है । उसको उठाकर एक अत्यन्त भूखा बालक उसे पीनेका प्रयत्न करने लगा। वहाँ बैठे हुए दुसरे मनुष्यने यदि वह कटोरा छीन लिया, तो कहिये, उस मनुष्यको धर्म होगा या पाप ? । 'और उस मनुष्यको अन्तराय लगेगी या नहीं ? । कहना हो होगा कि उस मनुष्यको-पाप नहीं, किन्तु धर्म होगा। भन्तराय नहीं लगेगी, किन्तु जीवके बचानेका महान् लाभ होगा।