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कदाचित् कोई यह कहे कि-'भगवान्ने जमालीको दीक्षा नहीं दी थी।' परन्तु यह ठीक नहीं है। जिस समय जमालीके माता-पिताने भगवान के पास आकर भसवान्से शिष्य की भिक्षा लेनेके लिये प्रार्थना की है, उस समय भगवान्ने स्वीकृत ही किया है । देखिये भगवती सूत्र, श० ९, उ० ३३ का पाठः
'तं एसणं देवाणुप्पियाणं अम्हे सीसभिक्खं दलयामो, पडिच्छंतुणं देवाणुप्पिया! सीसभिक्खं, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं!" ( पत्र ८३५)
अर्थात्-'हे देवाणुप्रिय ! आपको हम, यह शिष्यभिक्षा देते हैं, इसको आप स्वीकार करें । ' पश्चात् , भगवान्ने कहा:.. 'यथासुखं, प्रतिबंध मत करो।'
बस, इससे स्पष्ट है कि--भगवान्ने जमालीको जरूर स्वीकृत किया था। - देखिये, इसी प्रकार भगवान् ऋषभदेवस्वामीने भी चार हजार पुरुषोंको दीक्षा दी । और वे सबके सब क्षुधावेदनाके परिषहको नहीं सहन करते हुए, भाग गये और गंगाके किनारे तापस हो कर जा बैठे । इतना ही नहीं, उन्हीं में से कई लोगोंने पाखंडमत भी चलाए । अब, बतलाईये, इसमें ऋषभदेव भगवान् क्या करें ? । भगवान्ने तो उन लोगोंको तारनेके लिये दीक्षा दी थी । पीछेसे, उन लोगोंके दौर्भाग्यसे अनर्थ हुआ, तो इसमें भगवान्का क्या दोष ? । क्या यहाँ भगवान् ऋषभदेवस्वामीको भी चूके कहोगे ? । लेकिन नहीं, दौर्भाग्यके कारण अच्छे मनुप्योंकी बुद्धिमें भी विकार हो जाता है, परन्तु इसमें उपकारी पुरुषोंका दोष नही मिना जा सकता है .. .