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क्यों कि, यदि 'नाक' ढांकनेको कह होता, तो उपर्युक्त पाठमें 'मुहं बंधह' ऐसा पाठ क्यों होता ?। क्या मृगादेवीके 'नासं बंधह' कहने पर भी गणधरमहाराजने 'मुहं बंधह' गुंथन कर दिया ? | गणधरमहाराजपर ऐसा कलंक लगानेका दुष्कृत्य तेरापंथियोंके सिवाय और कौन कर सकता है ? । खैर, उपर्युक्तवृत्तान्तसे तो यही सिद्ध हुआ कि-'गौतमस्वामीने पहिले मुहपत्ती बांधी नहीं थी।' तेरापंथी लोग, जो उपर्युक्तवृत्तान्तको आगे करते हैं, यह अपनी अज्ञानताको अपने आपसे जाहिर करने के बराबर करते हैं। ___जब मनुष्य, वास्तविक युक्तियोंसे-प्रमाणोंसे अपना बचाव नहीं कर सकता है, तब वह 'कहींकी इंट, कहींका रोडा' मिला मिला करके आगे करता है, परन्तु वह वास्तविक युक्ति नहीं गिनी जाती है । जिस प्रमाणका मूल विषयके साथमें संबन्धही महीं है, उसको आगे करना क्या है, मानो अपनी कमजोरीको अपने आपसे जाहिर करना है।
तेरापंथी भाई भी, मुहपती बांधनेके विषयमें वैसीही युक्तियोंको आगे करते हैं। देखिये, तेरापंथी साधु जीतमलजीकृत 'जैनज्ञानसारसंग्रह' नामक पुस्तकके ५२ वे पृष्ठमें, ' मुखवस्त्राधिकार' में लिखा है:" ज्ञाता अध्ययन आठमें, दुर्गंध व्यापि ताहि ।
घटराजा मुज मुख ढांकियां, ते दुगंधि नाके आय" ॥४॥ " ज्ञाता नवमे अध्यनमें, दुर्गध व्यापि न्याल । मुख ढांक्या भाख्या तिहां, जिनरुख ने जिनपाल "॥५॥ ज्ञाता अध्ययन बारमे, जे जीतशत्रू राय । मूखढांके एम आँखिभो, दुर्गध व्यापी ताहि" ॥६॥ उपर्युक्त तीनों प्रसंगोंको पाठक देख लेवें।