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बस, इसी विचारसे लवजीने मूँहपर मुहपत्ती बांधना शुरू किया मालूम होता है। और यही परंपरा ढूंढियोंमेंसे तेरापंथियों में भी आजतक चली आई है ।
मुहपत्ती के विषयमें बस, हतनाही लिखकर, अब हम तरोपंथियों के उठाये हुए दया - अनुकंपा के विषयमें कुछ लिखें ।
-13 अनुकंपा 8
अनुकंपा, एक ऐसी वस्तु है कि वह संसारके समस्त मनुष्यों के हृदयमें स्वाभाविक ही रही हुई है । जैन, बौद्ध, हिन्दु, मुसलमान, और चाहे इसाई हो, चाहे कसाई, सभीने अनुकंपा को अपने हृदयों में स्थान दिया है करनेवाले, कुदरत से युद्ध कर, करते हैं ।
। इस
मानों
जैन धर्मका तो खास सिद्धान्त ही अहिंसा - दया - अनुकंपा है । क्योंकि - दशवैकालिक सूत्र के प्रथम अध्ययनकी प्रथमही गाथा में
है
कहा
अनुकंपाको हृदयसे दूर
उसको हरानेकी चेष्टा
-:
" धम्मो मंगलमुकिटं अहिंसा - संजमो तवो । देवावि तं नमसंति जस्त धम्मे सया मणो " ॥ १ ॥
इस अहिंसा लक्षण धर्मको माननेका दावा रखनेवाले भी दयाअनुकंपाका निषेध करें, इस जैसा और क्या हो दुःखका कारण सकता है ? | यह तो वैसाही हुआ जैसे, 'सलिलादग्निरुत्थिता' पानीमेंसे अग्निका उत्पन्न होना ।