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शब्द है । और इसी , करुण शब्द को ' करुणा समझ करके तेरापंथी सावध अनुकंपा निरवद्य अनुकंपा समझने की भूल
करते हैं ।
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6 करुणा " शब्द और ' करुण ' शब्दका एकही अर्थ समझ लेना, उसनीही भूल हैं, जितनी नहीं पिताको पिता समझनेकी भूल । करुण शब्दका अर्थ दूसरा होता है, ' करुणा ' शब्दका दूसरा I करुण शब्दका, अन्यप्रसंगों में उपयोग किया जाता
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" करुणा ' का अन्यप्रसंगों में । फिर भी ' करुणा ' और करुण' को एकही अर्थवाले समझना, अज्ञानता नहीं, तो और क्या ? | यदि ' करुण' शब्दका 'करुणा' ही अर्थ होता तो, प्रभुश्री हेमचन्द्राचार्य उपर्युक्त आठ नामोंके साथ इसको (करुण ) क्या न लिखते ? | बल्कि हेमचन्द्राचार्यने तो ' करुण' का उल्लेख दूसरे काण्डके २०८ वें श्लोकमें अलग ही किया है । अगर तेरापंथी करुणा - दया- अनुकंपा वगैरह शब्दों के अर्थोंमें ' करुण शब्दकी भी साथमेंही खिचडी पकाना चाहते हैं, तो हमें बतावें, i कुमारसंभव ' के ' विरुजैः करुणस्वरैरयम् ' इस पदका क्या अर्थ करेंगे ? | क्या यहाँपर भी तेरापंथियोंकी सावद्यदया ही आकर अडंगा लगावेगी ? | कभी नही ? | यहाँपर 'करुण' का कर्थ है ' आर्तभाव ' । दया- अनुकंपा वगैरह नहीं । इसी तरह सूत्रोंमें भी ' करुण ' शब्द अनेक जगहोंपर आता है । जैसे सूयगडांगसूत्रम:
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जड़ कालुलियाणि कासिया, जइ रोयंति य पुत्तकारणे । "
पृष्ठ - ११४, गा० १७ । " मणबंधणेहिं णेगेहि, कलुणविणीयमुवगसित्ताणं । "
पृष्ट-२२५, गा० ७ ।