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बस, इसी स्वकल्पित सिद्धान्तको पुष्ट करनेके लिये ही, उन्होंने सूत्रोंके पाठोंके अर्थ उलटे किये, अनेकों प्रकारके कुतर्क किये,
और यावत् परमात्मा महावीरदेवको भी ' चूके' कह दिये । कितना अनर्थ ! कितनी धृष्ठता ! कितनी अज्ञानता !। जन्मसे ही
तीन ज्ञानों ( मति-श्रुत-अवधि ) को धारण करनेवाले, दीक्षा के पश्चात् चतुर्थ ( मनःपर्याय ) ज्ञानसे विभूषित तथा अप्रमत्तसंयमवाले भगवान् तो ' चूक ' गये, और भीखमजी, कि जिसके ज्ञानकी पूंजी, इस ग्रन्थके प्रारंभमें ही दिखला दी है, वे न चूके । भगवान् तो भूल गये, और भट्टाचार्य भीखमजीने सही २ कहा।
वाहरे कुपुत्रता ! तूने भी संसारके मनुष्यों पर अपना प्रभाव अच्छा ही जमाया है । जिन माता-पिताओंने बडे परिश्रम, अतुलित खर्च और अनेकों कठोंका सामना करके लडकोंको बडे किये हों, उन्हीं माता-पिताओंको गालियां देनेवाले हजारों कुपुत्र संसारमें देखे जाते हैं, परन्तु संसारमें ऐसे भी स्वयं बनबैठे हुए कुपुत्रोंके देखनेका दौर्भाग्य मिला, कि जो जगजीवहितावह परमात्मा-परमेश्वरको भी ' चूके' कहनेका दुःसाहस करते हैं ।
अस्तु, हम कहाँ तक अपना अफसोस प्रकट करते रहेंगे ? । अभी बहुत कुछ लिखनेका है, अतएव उन तेरापंथियोंके कुतर्कोको ही प्रथम देखें । ___ जैसे दो मनुष्य लडते हों, और उनमेंसे कमजोर मनुष्य, वारंवार गालियोंका ही मंगलपाठ करके अपनी जीत दिखलानेका प्रयत्न करता है, वैसे ही तेरापंथी भी, इस अनुकंपाके विषयमें, एकही दृष्टान्तको जहाँ तहाँ खडा कर देते हैं ।