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तेरापंथियोंने अनुकंपाके निषेध करनेमें एक दृष्टान्त पकड लिया है । वे कहते हैं कि-' एक गृहस्थको पेटमें बहुत दर्द हो
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रहा है । उस समय साधुजी वहाँ आए । गृहस्थ कहता है किआपके, पेटपर हाथ फिरानेसे आराम हो जायगा । लेकिन साधुजी कहते हैं कि - यह हमारा धर्म नहीं । जब गृहस्थको बचानेका धर्म नहीं है, तो बिल्ली से चूहेको, कुत्तेसे बिल्लीको इत्यादि जीवोंके छुडानेमें कैसे धर्म आ गया ? |
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'विवाहकी वरसी' करनेवाले तेरापंथियोंकी बुद्धिमत्ता को देखिये । कहाँ तो गृहस्थका दृष्टान्त और कहाँ आफतमें आए हुए जीवोंके बचानेका ? |
गृहस्थको पेट में दर्द हो रहा है, उस दर्दको हटानेके लिये गृहस्थको साधुके पास जानेकी आवश्यकता ही क्या है ? | क्योंकिउन लोगोंके लिये तो संसार में वैद्य मौजूद ही हैं। और क्या साधु, वैद्य हैं, जो उनसे रोग मिटानेकी प्रार्थना करें ? | यदि इस तरहसे साधु, रोग मिटाते फिरेंगे, तो किसी समय गृहस्थ उसकी स्त्रीके भी रोगके मिटानेकी प्रार्थना करेगा । फिर तो वे साधु ही काहेको ठहरे ? एक प्रकारके वैद्य ही समझ लो न ? | कहनेका मतलब कि - गृहस्थ लोग हजारों उपाय करके रोग मिटा सकते हैं, परन्तु चूहे-बिल्लो वगैरह स्वयं बचनेके लिये क्या उपाय कर सकते हैं ? | और एक यह भी बात है कि गृहस्थ, पेट में दर्द होने के कारण मर • ही जायगा, अथवा साधुके हाथ फिरानेसे बच ही जायगा, ऐसा निश्चित ज्ञाने क्योंकर हो सकता है ? । और यदि इस प्रकारका ज्ञान साधुको हो भी जाय कि, इस मनुष्य के लिये संसार में दूसरा कोई उपाय नहीं रहा है-अन्य किसी उपायसे बचनेवाला
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