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अर्थात् - तब, हे गौतम! मैंने मंखलिपुत्र गोशालकी अनुकंपाके कारण, बालतपस्वी वैश्यायनको उगते जे लेश्य के तेजको दूर करने के लिये, मैंने शीतलेश्या छोडी |
यहाँ पर भगवन्ने स्वयं श्रीमुखसे फरमाया है कि 'मैंने अनुकंपाके कारण ही गोशालेको बचाया है ।' अर्थात् गोशालेको बचाने में अनुकंपा ही कारण है । और कुछ नहीं ।
अब सोचने की बात है कि जब भगवान्ने ही अनुकंपा के कारण जीवको बचाया है, तो फिर हम लोग बचावें, इसमें आश्चर्य ही क्या है ? | जब तेरापंथियोंकी यहाँ पर एक भी न चली, तब उन्होंने कह दिया कि-' भगवान् चूके '.
तेरापंथीलोग, भगवान्को चूके' दिखलाते हैं, इसका तो हम जवाब आगे जाकर लिखते हैं, परन्तु अभी तेरापंथियोंकी इस विषयमें द्विधावा नहीं, अनेकों वाक् दिखलाना उचित समझते हैं ।
तेरापंथियोंके ' अनुकंपा रास ' की प्रथम ढालकी ११ से १५ कडियोंमें लिखा है:
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" साधां ने लबध न फोरणी जी सूत्र भगोती मांय । पण मोहकर्मवसर गयी, तिणसुं लियो गोसालो बचाय॥ ११ ॥ छ लेस्या हुंती जद वीरमें जी, हुंता आठोई कर्म । छद्मस्थ चूका तिण समेजी, मूरख थापे धर्म ॥ १२ ॥ छदमस्थ चूक पर्यो तिकोजी, मुढे आगे बोल । पण निरवद्य कोय मजाणेज्याजी, सकल हियारी पोल ||१३|| ज्यू आणंदश्रावकने घरेंजी, गोतम बोल्या कूर । परिया छदमस्थ चूक, सुध हुय गया वीर हजूर ॥ १४ ॥ इम अवस उदे मोह आवियोजी, नहीं टाल शक्या जगनाथ । एतो न्याय न जाणियोजी, ज्यारे मांहे मूलमिध्यात ॥ १५ ॥