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५३ सभीको टीका वगैरहका आश्रय वो लेना ही पड़ता है। हम लोगोंकी उतनी बुद्धि-प्रतिभा कहाँ, जो मूलसूत्रोंसे ही, उनके यथार्थ तात्पर्यको निकाल सकें । हम लोगोंका उतना ज्ञान कहाँ, कि जो बात, मूलसूत्रोंमें लिखीही न हो, उसको भी अपने आपसे जान लें । तब इसके लिये क्या करना होगा ? । धुरंधर ज्ञानी आचार्योंके वचनोंको हमें मानना पडेगा, और उन वचनोंपर हमें निर्भर भी रहना होगा। क्या तेरापंथी लोग इस बातको अस्वीकार करेगें ? । यदि अस्वीकार करते हों तो, हम पूछ सकते हैं कि' जिस सीमंधरस्वामीको तुम लोग मानते हो, और उनके सामने क्रिया करते हो, उस सीमंधरस्वामीका नाम, बत्तीस सूत्रोंमेंसे किस सूत्रके मूल पाठमें है ? ' यह दिखलाओ। यदि बत्तीस सूत्रोंके मूल पाठोंमें कहीं नहीं है, तो फिर क्योंकर मानते हो ?। जिस आर्द्रकुमारकी कथा, श्रावकोंके सामने कह सुनाते हो, उस आर्द्रकुमारकी सारी कथा, तुम्हारे बत्तीससूत्रोंमेंसे किस सूत्रमें है ? इत्यादि कई बातें ऐसी हैं, जो मूल सूत्रोंमें नहीं होनेपरभी मानी जाती हैं । इससे कहना होगा कि-बत्तीससूत्रोंके मूलपाठोंके सिवाय और किसी चीजके नहीं माननेका जो वे घमंड रखते हैं, सो बिलकुल झूठाही घमंड है। यदि यह घमंड सञ्चा होता तो बत्तीस सूत्रोंके सिवाय और सूत्र एवं टीकादिका आश्रय लेतेही क्यों ?।
अब यहाँपर तेरापंथी यह कहते हैं कि-"प्रमाण तो हर किसीके शास्त्रोंके दिये जा सकते हैं, परन्तु इससे उन शास्त्रोंका मानना. सिद्ध नहीं होता। इस पर एक दृष्टान्त देते हैं कि-भगवान् - महावीरदेवसे, सोमिलने पूछा है कि सरसय भक्ष वा अभक्ष ? । इसके उत्तरमें भगवान्ने कहा है कि, 'ब्राह्मणके शास्त्रोंमें सरसव