________________
उपर्युक्त पाठ में 'वा' शब्द रखा हुआ है । और 'वा' शब्द दूसरे अर्थको सूचन करता है । इस. लिये यहाँ एक तो मौन रहनेकी बात है, और दूसरी ' जानता हुआ भी, नहीं जानता' ऐसे कहनेकी। ___ यह बात हम ही नहीं कहते हैं, परन्तु बाईससमुदायके पूज्य श्रीरामचन्द्रजीके बनाये हुए 'सत्यमिथ्यार्थनिर्णय ग्रंथ ' के ३७ वें पृष्ठमें भी लिखा है कि_ 'भावार्थ यह है कि-देखे हुयेको भी कहते हैं कि-हमने नहीं देखा। इस पाठका कोई अर्थ करते हैं कि-' मौन रक्खे,' सो शास्त्रका अज्ञान हैं। क्योंकि-इस सूत्रके पछाडीका सूत्र मौन रखनेका अलग है ।"
इसी तरह, इसी बाईससमुदायके साधुजी कनीरामजी विरचित, 'सिद्धान्तसार' नामक ग्रंथके, २११ पृष्ठमें भी लिखा है कि___ " कोइ मृगप्रच्छाने समये मृगरक्षाने कारणे जुडं बोले ते दयाना प्रणाममुं जुठ टालीने बीजा जुठनां माठां फल कह्यां, एटले दयाना प्रणामथी जुठ बोले, तेनां माठां फल कह्यां नथी. ए पुरुपना जुठ बोलवाना प्रणाम नथी, पण मृग्यादिकने राखबाना प्रणाम छे. ते माटे दयानां फल लागे, पण जुठनां फल न लागे ।"
हम उन बाईस समुदायवाले महाशयोंको, जोकि-ऐसे प्रसंगोंमें भी झूठके नामसे चमक उठते हैं, उनके ही मजहबके साधुजी कनीरामजी, और श्रीरामचन्द्रजीके उपर्युक्त वचनोंपर ध्यान देनेके लिये अनुरोध करते हैं। ___ यह कभी न समझा जावे कि-'हम झूठके पक्षपाती हैं।' हम भी सच्चे सत्यके ही पक्षपाती हैं । परन्तु जहाँ पर भगवान्ने