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" से उज्जमाना कटुणं धणंति, अरह स्सरा तस्थ चिर द्वितीया।"
-पृष्ठ- २७०, मा० ७ ।
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सया य कलूणं पुण धम्मठाणं, गाढोवणीयं अतिदुक्ख धम्मं । 93
पृष्ठ- २७३, गां० १२ ।
" पक्विप्प तासु पययंति वाले, अट्टस्सरे ते कलुणं रसंते।”
पृष्ठ- २८२, गा० २५ ।
" ते डज्जमाणा कलुणं थांति, उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता ।
पृष्ठ- २८६, गा० ४ ।
" ते सुलविद्धा कलुणं गिलाणा । "
- एतदुक्खं दुहुओ
पृष्ठ- २८९, गा० १० ।
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थणंति,
" चिया महंती समारभित्ता, छिज्जंति ते तं कलुणं रसंतं। " पृष्ठ- २९१, गा० १२ ।
,
इत्यादि स्थानों में भी क्या तेरापंथी दया करुगा - अनुकंपा ही अर्थ ठोकते रहेंगे ? | क्या ये अर्थ यहाँपर उचित गिने जा सकते हैं ? | कभी नहीं । तब कहना ही होगा कि - ' करुण - शब्दका अर्थ होता हैं शोक - आर्तभाव । न कि करुणा - दया वगैरह | और यही अर्थ प्रभु श्रीहेमचन्द्राचार्यने काव्यानुशासन के . ७६ पृष्ठ में लिखा है ' : शोकः करुणः ।
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तेरापंथी लोग, इस b करुण ' और ' करुणा ' शब्दके भेदों को नहीं समझ करके ही दो प्रकारकी दया- अनुकंपा मानने लग गये हैं। हमें आश्चर्य तो इस बातका होता है कि जब ऐसे भिन्न २
शब्दोंके भेदोंकोही नहीं समझ सके हैं, तो अनुकंपा - दया- करुणा