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दो प्रकारके दिखलाए हैं । तो क्या ब्राह्मणोंके शास्त्रोंको भगवान्ने मान लिये ?।"
तेरापंथियोंकी यह युक्ति, पानीसे मक्खन निकालने जैसी है । तेरापंथी अभी इस बातको तो समझे ही नहीं हैं कि-दूसरोंके शास्त्रोंके प्रमाण कब दिये जा सकते हैं ?। दूसरोंके शास्त्रोंके प्रमाण तब दिये जा सकते हैं, जबकी वही बात अपने शास्त्रोंमे लिखी हुई मिलती हो । भगवान् महावीर देवने दो प्रकारके सरसव ब्राह्मणशास्त्रोंसे दिखलाए, इसका यही कारण है कि-जैनशास्त्रोंमें भी दो ही प्रकारके सरसव माने हुए हैं। यदि जैनशास्त्रों में दो प्रकारके सरसव नहीं माने हुए होते, तो भगवान कभी ब्राह्मणशास्त्रोंका प्रमाण नहीं देते । ब्राह्मणशास्त्रोंके प्रमाणों की क्या बात है ? जिस समय हम ' दया' का प्रतिपादन करते हैं, उस समय हम मुसलमानोंके धर्मशास्त्रके प्रमाण देते हुए कहते हैं कि-' मुसलमानोंके कुरानेशरीफमें भी लिखा है कि-समस्त जीवोंपर रहम' रखना चाहिये । ' अब बतलाईये । यदि हमारे जैन शास्त्रोंमे दयाकारहमका प्रतिपादन न किया होता, तो हम क्या कुराने शरीफका उदाहरण दे सकते थे ? । कभी नहीं । इसी प्रकार ' रात्रिभोजन नहीं करना ' इत्यादि विषयोंमें हम हिन्दुधर्मशास्त्रोंके प्रमाण इसी लिये देते हैं, कि-वे बातें हमारे शास्त्रोंमेंभी लिखी हुई पाई जाती हैं । परन्तु हम तेरापंथियोंसे पूंछते हैं कि-जिन २ विषयों में, तुम लोग कभी २ नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाओंका आश्रय ले ले करके अपना कार्य चलाते हो, उन २ विषयोंका, तुम्हारे माने हुए किन २ शास्त्रोंमें उल्लेख है ? यह दिखलाओ। जो चीजें तुम्हारे घरमें है ही नहीं, उन चीजोंके लिये तुम्हारे मन्तव्यानुसार भी तुम कभी दूसरोंका आश्रय नहीं ले सकते हो । हां, सीमंधरस्वामीका