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- जिन लोगोंके लिये यह 'हितशिक्षा' लिखी जाती है, वे (तेरापंथी)' अहिंसा' को मानते हुए भी अनुकंपाको नहीं मानते हैं, यह उस मतके उत्पादककी बुद्धिक वैपरीत्यका ही परिणाम है। अन्यथा ' अपने हाथसे किसी जीवको न मारना, यही धर्म समझ कर, ' मरते हुए जीवको बचानेमें-रक्षाकरनेमें अधर्म ' समझते ही क्यों ? । ___ 'किसी ,जीवको न मारना' यह अहिंसा, और 'दुःखी जीवोंको दुःखसे मुक्त करना-रक्षा करना, यही दया,' इस प्रकार दोनों शब्दोंकी व्याख्या की जाय, तो कहना होगा कि-तेरापंथी समाजमें दया है ही नहीं। और जिस समाजमें-जिस धर्ममें धर्मकी जड-मूल दया ही नहीं है, वह समाज या धर्म संसार समुद्रसे तारनेको समर्थ हो ही कैसे सकता है ? ।
तेरापंथी 'हम अनुकंपा नहीं मानते हैं ' ' हम अनुकंपा नहीं मानते हैं । ऐसी पुकार किया करते हैं, परन्तु जब उनसे युक्तियोंके द्वारा पूछा जाता है, तब वे दूसरा कोई उपाय नहीं चलनेसे अनुकंपा-दयाके दो विभाग कर दिखाते हैं। १ सावद्य और २ निरवद्य। जैसे जीतमल्लजीने, हितशिक्षाके गोशालाधिकारमें, इसीकी पुष्टि करते हुए कहा है:
" कोई कहे सावध दया, किहां कही छे ताम | न्याय कहूंछ तेहनो, सुणो राख चित ठाम" ॥७२।।
इससे स्पष्ट होता हैं कि-तेरापंथी सावद्य-निरवद्य दो प्रकारकी दया-अनुकंपा मानते हैं । लेकिन ऐसा मानने में उन्होंने कितनी भारी भूल की है ? इसको ही प्रथम पाठक देखें ।
सम्यक्त्व के पांच लक्षण शास्त्रोंमें दिखलाए है:-१ शम, २ संवेग, ३ निर्वेद, ४ अनुकंपा और ५ आस्तिक्य । इन पांचों