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उस शाकमेंसे एक बिंदु निर्जीव भूमिमें गिराया, तो उसपर, हजारों कीडिएं इकट्ठी हो गई, और मरभी गई । इसको देखकर धर्मरुचिने विचार किया कि-'यदि इस शाकको परठव दूंगा तो बहुत जीवोंकी हिंसा होगी, इस लिये मैं ही इसको खा जाऊं' बस । ___ " एवं संपेहेइ २ त्ता मुहपत्तियं पडिलेहइ २ ता सिसोवरि कायं पमज्लेइ २ त्ता तं सालइयं तितकडुयं बहुनेहावगाढं बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं सव्वं सरीरकोसि पक्विवइ।" ____ अर्थात्-ऐसा विचार करके मुहपत्तीकी पडिलेहणा की। पडिलेहणा करके मस्तक सहित काया पडिलेही । . प्रमार्जन करके वह बहुत तेलसे पकाया हुआ कटुतुंबेका शाक, धर्मरुचिने, जैसे बिलमें सर्प प्रवेश करे, वैसे अपने कोठेमें डाल दिया।" (पृष्ठ ११६२) ___ यहाँ कहनेका तात्पर्य यह है कि--आहार करनेके समय जैसे मुहपत्तिकी पडिलेहणा धर्मरुचिने, की है, वैसे दशवकालिकके उपर्युक्त पाठमें में भी ' हत्थगं' शब्दसे ' मुहपत्ती ' लेनेकी है, न कि दूसरी कोई चीज । ___ चौदपूर्वधर श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामी, कायोत्सर्ग (काउस्सग) किस तरह करना, इस विषयमें आवश्यकनियुक्तिके पांचवें अध्ययनमें लिखते हैं:" चउरंगुल, मुहपोती उज्जुए डब्बहत्थरयहरणं ।
वोसहवत्तदेहो काउस्सग्गं करेजाहि ॥ ४९ ॥ अर्थात्-दोनों पैरोंके बीचमें चार अंगुलका अन्तर रख कर खडे रहेना,, मुहपत्ती दाहिने हाथमें, और ओघा बाये हाथमें रखना, फिर अपने शरीरको वोसराकर कायोत्सर्ग करे । . अब देखिये, यहाँपर भी मुहपत्ती हाथमें रखना ही कहा ।