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अर्थः-अरे ! यह बीभत्सरूपवाला, काला, विकराल, बैठी नाकवाला, खराब वस्त्रोंवाला, पिशाचरूप. नथा कंठमें सड़े हुए वस्त्रोंको पहन करके कौन आता है ?।
ब्राह्मणोंके इस कथनसे हरिकेशीमुनिके वेशका परिचय हो जाता है । यद्यपि ये वचन ब्राह्मणोंने निंदाप्रयुक्त कहे हैं, परन्तु इससे यह तात्पर्य जरूर निकाल सकते हैं कि-'विकराल ' शब्दके कहनेसे हरिकेशी मुनिके मुखपर मुहपत्ती बांधी हुई नहीं थी । क्योंकि-संसारके व्यवहारमें यह देखा जाता है कि-'विकराल शब्दका लोग उसी जगह व्यवहार करते हैं कि जहाँ लंबे-मोटे दांत देखे जाँय । ' अनेकार्थसंग्रह' के १२३२ वें श्लोकमें भी 'करालो रौद्रतुङ्गोत्रणतैलेषु दन्तुरे' कह करके कराल (विकराल) शब्दका 'दन्तुर' ऐसा दूसरा नाम ही दिया है । और यदि हरिकेशी मुनिके मुख पर मुहपत्ती बांधी हुई होती, तो न उनके दांत देखलाई देते
और न 'विकराल' शब्द ही कहते । . इसी उत्तराध्ययनसूत्रके २६ अध्ययनकी २३ वीं गाथाको भी देखिये । यहाँ पर प्रतिलेखनाकी विधिका अधिकार. चला है । इसमें कहा है:
"मुहपत्तियं पडिलेहिता पडिलेहेज गुच्छयं । गुच्छगलायंगुलिए वत्थाई पडिलेहए ॥ २३ ॥
[पृष्ठ ७७२] अर्थात्-मुहपत्तीकी पडिलेहणा करके गुच्छे (पातरोंके बांधनेका ऊनी वस्त्र ) की पडिलेहणा करे । फिर अंगुलीमें गुच्छेको रखकरके, मोलीके ऊपर रखनेके पल्लोंकी पडिलेहणा करे ।