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- देखिये पूज्यजीको मिश्रभाषा ? | पूछनेवाला भूल गया, नहीं तो उन्हें पूछना चाहिये था कि-'जब महपर बांधनेको नहीं लिखा, हाथमें रखनेको नहीं लिखा, तो क्या फेंक देनेको लिखा है मा गले यांधनेको लिखा है ? । और यह भी पूछना चाहिये था कि-'जब बांधनेको नहीं लिखा, तो फिर आप क्यों बांधते हैं।' अस्तु !
यहाँ पर कहनेका तात्पर्य यह है कि-स्थानकवासी साधुसावी यद्यपि मुंहपर मुहपत्ती बांधते हैं, परन्तु इतना जरूर मानते हैं कि-'मुहपत्ती बांधना सूत्रोंमें कहीं नहीं लिखा ।'
इसी तरहसे तेरापंथी भी इस बातको तो जरूर स्वीकार करते हैं कि-'मुहपत्ती बांधना, किसी सूत्रमें नहीं कहा ।' तिसपर भी बांधते हैं, और अनेक प्रकारकी कुयुक्तियां भी लगाते हैं। लेकिन उनकी, वे कुयुक्तियां क्या हैं, मानो उनकी अज्ञानताकी, भिन्न २ स्वरुपकी तस्वीरें हैं । अर्थात् उन कुयुक्तियोंसे यह जाहिर हो जाता है कि-अपने ककेको सच्चा मनानेके लिये अपनी बुद्धिका उन्होंने कैसा दुरुपयांग किया है?।
हम सूत्रों और युक्तियों से ' मुहपत्तीको हाथमें रखना '. सिद्ध करें, इसके पहिले, तेरापंथी, मूंहपर मुहपत्ती बांधनेके लिये जो कुयुक्तियाँ देते हैं, उन्हींके ऊपर कुछ विचार करें।
तेरापंथी कहते हैं कि-'गीतमस्वामी जिस समय मृगालोढियेको देखनेके लिये पधारे, उस समय मगादेवीके कहनेसे श्रीगौतमस्वामीने मुहपत्ती बांधी है।' .... हम भी मानते हैं कि-गौतमस्वामीने, मृगादेवीके वहाँ जब पधारे, वब, उस समय दुर्गधीके कारण मुहपत्ती बांधी। लेकिन