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करना पड़ा ! मुहपत्तीको हाथमें रखने वाले तो शामाकूल रखत हैं, परन्तु मुंहपर बांधने वाले-आप लोग शास्त्रसे प्रतिकूल करते हो, इसका भी तो कुछ विचार करो।
हम पहले ही कह गये हैं कि भगवान्ने उपयोग पूर्वक बोलनेको कहा है, और जब मुहपत्तीको बांध ही दी, तो फिर उपयोग किस बातका रहा ? दिनभर बडबड करते ही रहो, क्या तकलीफ होती है. ?। तकलीफ पडती है उपयोग रखनेमें, जिसमें कि धर्म कहा है। और मुहपत्ती बांधनेवालोंको तो उपयोग रखनेकी आवश्यकता ही नहीं रही । तो फिर उसमें धर्मही कैसे कहा जाय । - तेरापंथी कहते हैं:
" सूठ तणो जे गांठीओ गणिदेवाद्वि संवाद । . भोगवणो भूली गया संध्या आयो याद" ॥ २३ ॥ " जाण्युं बुद्धि हिणी पड़ी लिख्या सूत्र सुखराश ।
वीरनिरवाण गया पछी नवसय ऐसीवास" ॥ २४ ॥ - बिलकुल ही झूठी बात है। श्रीदेवगिणिक्षमाश्रमण झूठका गांठिया भूले ही नहीं। तो फिर इस निमित्तसे ' पुस्तकारूढ किया' ऐसा कहना सरासर अपनी अज्ञानताको प्रकट करना ही है। सूंठका गांठिया कानमें रह गया था श्रीवज्रस्वामिको । देखिये श्री वनस्वामि-प्रबन्धमें लिखा है:--
" श्लेष्मरोगापनोदायानायद्विश्वभेषजम् । . उपयुक्तावशेषं च श्रवणे धारयत्ततः ॥ १६८ ॥
प्रत्युपेक्षणकाले तत्तत्रस्थं चापराह्निके । मुखवस्त्रिकयात्रस्यत्कणयोः प्रतिलेखने ॥ १६९ ।। दध्यावायुरो क्षीणं विस्मृतियन्ममोदिता।"
(प्रभावक चरित्र पृष्ठ ११)