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इससे तेरापंथियोंकी दाल कैसे गली । प्रियपाठक, पहिले उस . अधिकारको देख लीजिये।
जिस समय श्रीगौतमस्वामी, मृगालोढियेको देखनेके लिये पधारे, उस समय मृगादेवीने गौतमस्वामीसे कहा:
___"एहि णं तुम्भे भंते ममं अणुगच्छह जहा णं अहं तुभं मियापुत्तं दारयं उवदंसेमि, तए णं से भगवं गोयमे मियदेषि पिट्टओ समणु गच्छइ,तए णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकट्टमागी २ जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चउप्पडे णं वत्थेणं मुहबंधमाणी भगवं गोयमं एवं व० तुम्भे विणं भंते मुहपोत्तियाए मुहं बंधह, तएणं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्चे समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ २ त्ता तएणं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ तओ णं गंधो निगच्छह ".
[विपाक सूत्र पृष्ठ-२१] भावार्थ:-हे भगवन् ! आप मेरे पीछे २ आईए, मैं आपको मृगापुत्र दिखाऊं। तब श्रीगौतमस्वामी मृगादेवीके पीछे चले । मृगादेवी, उस काष्ठ के शकटको खींचती हुई जहाँ भूमिगृह था, वहाँ ले आई। और आकरके, चारपडवाले वस्रसे मूंह बांधा । और गौतमस्वामीसे कहा:-आप भी मुखवत्रिकासे मुखको बांधिये । इसके बाद गौतमस्वामीने मुखवस्त्रिकासे मुख बांधा। तदनन्तर मृगादेवीने भूमिगृहके द्वार खोले, और उसमेंसे दुर्गंध आने लगी। _अब इस पर विचार करनेका है कि-यदि गौतमस्वामीका मह बंधा हुआ होता तो मृगादेवी कहती ही क्यों, कि आप मुंह बांधिए ? । यदि यह कहा जाय कि-मूह तो बंधा हुआ था, किन समोवीने नाक दाने को कहा। तो यह भी माना है।