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लेकिन इन दोनोंकी मुहपत्तियों में फर्क है। स्थानकवासियोंकी मुहपत्ती चौडी अधिक रहती है, और तेरापंथियोंकी मुहपत्ती चौंडी थोडी और लंबी विशेष रहती है । अब एकही सिद्धान्तको माननेवाले दोनोंमे ऐसा विभेद क्यों ? क्योंकि जिन बत्तीस सूत्रोंको ढूंठिये मानते हैं, उन्हीं बत्तीस सूत्रोंको तेरापंथी भी मानते हैं । और ये दोनों, बत्तीस सूत्रोंके सिवाय भाष्य-चूर्णि-नियुक्ति टीका वगैरहको नहीं मानते हैं। फिर मुहपत्तीके बांधनमें ऐसा फर्क क्यों? यह एक स्वाभाविक प्रश्न उपस्थित होता है । और अन्तसें इसमें यही परिणाम निकालना होगा कि इन दोनोंका बांधना शास्त्र विरुद्ध है।
___ हम यह समझते थे कि-इन लोगोंमें जब इतनी प्रवृत्ति चल पडी है, तो शास्त्रोंके विपरीत अर्थाद्वारा भी कुछ न कुछ उत्तर तो देते होंगे। लेकिन यह कल्पना मात्रही ठहरी । अभी कुछ दिन हुए, स्थानकवासी (ढूंढक) पूज्य श्रीलाल जीके व्याख्यानमें, एक मनुष्यने प्रश्न किया कि-' महाराज! मुहपत्ती मूंहपर बांधना, बत्तीस सूत्रों मेंसे किस सूत्रमें लिखा है ?। श्रीलालजीने व्याख्यानमें स्पष्ट कह दिया कि- बत्तीस सूत्रों से किसी सूत्रमें मूंहपर मुहपत्ती बांधना नहीं लिखा है।' इससे साफ जाहिर हो जाता है कि-' मुहपत्ती बांधनेवाले भी इस बातको तो स्वीकार करते ही है कि-मूंहपर मुहपत्ती बांधना शास्त्रविरुद्ध है।'
श्रीलालजीकी एक और बातसे हमें विशेष आश्चर्य हुआ। दूसरे ही दिन एक मनुष्यने श्रीलालजीले पूछा कि-'महाराज ! आपने कल फरमाया था कि-महपर मुहपत्ती बांधनेका किसी सूत्रमें नहीं लिखा, तो हाथमें रखनेका लिखा है कि नहीं ?" श्रीलालजीने कहा:-"हाथमें रखनेका भी नहीं लिखा"।