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'तीर्थकी विद्यमानता मान करके भी 'साधु' की अविद्यमानता
मानना ।
और भले ही 'तीर्थ' शब्दका अर्थ ' प्रवचन - शासन' रहे, तौ भी पूर्वोक्त आधार आधेयकी युक्ति के अनुसार आपकी खिचडी नहीं पकनेवाली है । क्योंकि - प्रवचन, सिवाय चतुर्विधसंघ के नहीं रह सकता । चतुर्विधसंघ के अभाव में भी अगर ' प्रवचन - शासन' रहता हो, तो महावीरदेवके शासनकी मर्यादा, इक्कीसहजार वर्ष तककी नहीं दिखला कर आगामी चौवीसीके प्रथम तीर्थंकर 'पद्मनाभ ' के शासन चलनेके पहिले समयतक कहनी चाहिये थी । जब ऐसा नहीं कहा, तब निश्चित होता है कि - चतुर्विधसंघ के आधार सिवाय प्रवचन- शासन ( आधेय ) नहीं रह सकता है ।
भीखु चरित्रकी छठवी ढालके प्रारंभ में लिखा है:
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"चरमकल्याणक हुआ घणुं, तिणरो सुणो सहु विस्तार ! सरियांरिमां स्वामिजी बिराजियां, हवे भाद्रवा मास मोजार" । १
पहिले कहा जा चुका है कि - कल्याणक तीर्थंकरोंके होते हैं । और वे पांच होते हैं: - १ च्यवन ( गर्भ में आनेका ) २ जन्म,
३ दीक्षा, ४ ज्ञान ( केवलज्ञान ) और ५ निर्वाण (मोक्ष) । भीखमजी जैसे 'देवानांप्रिय' के भी उनके भक्तोंने कल्याणक लिख मारे। लेकिन इसमें भी ' च्यवन ," दीक्षा ' ' और ' केवलज्ञान ' कल्याणक तो बतलाए ही नहीं | और यकायक कूदकर चरम (अन्तिम) कल्याणकपर आ पहुँचा। अन्तिम कल्याणक उसीका होता है जिसका मोक्ष होता है । तेरापंथी लोग बतावें, भीखमजीका क्या मोक्ष हुआ ? । लेकिन ' नोक्ष हुआ ' ऐसा तो मानते