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मूर्तिपूजा आदिको उठानेवाला भीखम | क्या कभी ऐसे अल्पज्ञ पुरुषोंके भी कल्याणक हो सकते हैं ? । भगवान् के कल्याणकोंके सम
में तो इंद्रादि देवता भक्ति करनेको आते हैं, कल्याणकोंके समय में नारकी के जीवों को भी क्षणभर सुख होता है । कहिये, भीखमके कल्याणकोंके समय में क्या हुआ ? |
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अन्तमें जा कर तेरहवीं ढालमें भी जगह २ परमात्मा ऋषभदेवभगवान् के साथही समानता दिखलाई है । लेकिन इस विषय पर पहिले ही तेरापंथियोंकी अज्ञानताकी - अंधश्रद्धा की फोटू खींची गई है, इस लिये यहाँ विशेष लिखने की जरूरत नहीं है ।
अगर सामान्यदृष्टिसे देखा जाय तो भी भिखमजी, उत्तम पुरुषों की पंक्ति में गणना करने योग्य नहीं मालूम होता है । क्योंकि--जिस दिन वह मरा है, उस दिन बडे कष्टोंसे इसकी मृत्यु हुई | क्योंकि प्रातःकालके एक प्रहर दिन जानेके पश्चात्, सायंकाल के प्रहर देढ प्रहर दिन रहने तक, जब तक कि, भीखमकी मृत्यु नहीं हो गई, तब तक इसकी जिव्हा बिलकुल बंध हो गई थी, अतएव अवाच्य वेदनाका अनुभव करना पड़ा था । अब यह सोचने की बात है कि-क्या, जो उत्तम पुरुष होते हैं, उनकी ऐसी मृत्यु कभी होती है ? | कभी नहीं | उत्तम पुरुषोंकी मृत्यु तो शुभ अध्यवसाय पूर्वक होती है ।
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लार -- संक्षेपसे कहा जाय तो, भीखम चरित्र के पढनेसे मालूम होता है कि भीखम बिलकुल निरक्षर भट्टाचार्य था । उसने अपनी मानता- पूजा के लिये ही अपने जीवन में जो कुछ किया है, सो किया हैं | अपनी पूजा करानेके लिये ही परमात्मा की पूजाका निषेध किया है । अपनी अज्ञानता के परिणामसे ही वह सूत्रों के अर्थोको