________________
न समझ सका, और मनमें आई वैसे परूपणा की । आज पर्यन्त भी उसकी परंपरामें आए हुए साधु-साध्वी मारवाड-मेवाडमें अ. धर्मका प्रचार कर रहे हैं, इसका मूल कारण भीखम ही है । यह, भीखमके उपदेशका ही परिणाम है कि, उसके साधु, साध्वियोंके झुंडोंके झुंडोंको साथमें रखकर घूमते हैं । साध्वियोंसे आहार पानी मंगवा कर माल उडाते हैं । एक एक दिनको छोड कर नियमसे उन्हीं श्रावकोंके वहाँ गोचरी जाते हैं। एक ही घरसे जी चाहे जितना माल उठाते हैं । सारे दिन भर, बल्कि रात्रिको भी साध्वियाँ और श्राविकाओंको बैठा ही रखते हैं । पडदेमें जाकर साध्वीके दिए हूए आहारको खाते हैं । भगवान्ने तो फरमाया है कि चित्रामणकी पुतली भी जिस मकानमें हो, उसमें नहीं रहना । और ये उपर्युक्त व्यवहार करते हैं। इससे स्पष्ट जाहिर हो जाता है कि-इस पंथके मूल उत्पादक भीखमका, उपदेश और आचार दोनों शास्त्र विरुद्ध थे ।
अस्तु, अब आगे तेरापंथियोंके मन्तव्य और आचारों पर · कुछ विचार करें।
RO मुहपत्ती. - यह लोकोक्ति बहुत ही सत्य है कि-'आकृतिर्गुणान् कथयति' मनुष्यकी आकृति ही, मनुष्य के गुणोंको कह देती है। और वह आकृति प्रायः करके मनुष्यके वेषादिपर विशेष आधार रखती है। तेरापंथी साधु-साध्वियोंको जिन्होंने देखे होंगे, वे अच्छी तरह जानते होंगे कि उनकी आकृति कैसी होती है । हम