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अर्थ:- हे भगवन् ! पुलाकनिर्यडा, क्या तीर्थ में होता है, कि rain होता है ? । भगवान् कहते हैं: - गौतम ! तीर्थमें होता है, अतीर्थ में नहीं होता है। इसी तरहसे बकुश और प्रतिसेवणाकुशीलको भी समझना ।
बस, सिद्ध हो चुका कि, जब बकुशादि नियंठे तीर्थ में होते हैं, सो फिर जिनमें बकुशादि नियंठे रहते हैं, वे दो चारित्र ( सामायिकचारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र) भी तीर्थ में ही
हुए ।
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अब यह विचारने की बात है कि भीखमजी, जब तीर्थमें ही नहीं रहे संघ में ही नहीं रहे - गुरुपरंपरामें ही नहीं रहे, तो फिर उनको सामायिकचारित्र और छेदोपस्थापनीयचारित्र मिला ही कहाँसे ? तीर्थमें तो साधु वे ही गिने जा सकते हैं कि, जो गुरुपरंपरामें होते हैं । और ऐसे तो भीखमजी थे नहीं । इन्होंने तो विना गुरुकेही मुंडवा लिया था | और इससे यह भी प्रत्यक्षसिद्ध हुआ कि भीखमने पंथ निकालनेके प्रारंभ में ही भगवान्की आज्ञाके विराधनेका 'श्रीगणेशाय नमः' किया ।
भीखुचरित्र लेखकका यह लिखना बिलकुल झूठ हैं कि:--
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"उदे उदे पूजा कही, श्रमण निग्रंथनी जाण । तिणसुं पूज प्रगट थया, ए जिन वचन प्रमाण" ॥२॥
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यह उदय उदयमें पूजा तेरापंथी साधुओं जैसे महात्माओं (!) की नहीं कहीं । किन्तु श्रमणनिग्रंथोंकी कही है। और भगवान् के कथनानुसार श्रमण नियोंकी पूजा हुई भी है। देखिये, दो हजार वर्ष के भस्मंग्रह के उतरनेके पश्चात् अभी तक ४४१ वर्ष हुए हैं । इतने वर्षोंके