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१३ "विकमका लाओ पणरसय-पणहत्तरीवासेसु गएसु कोहंडिअपरिग्गहियवंतरिष्पहावाओ भारहे वासे सुयहीलणा जिणपाडमाभत्तिनिसेहकारया सच्छंदायारा दुम्मेहा मलिंगा दुग्गरगामिणो बहवे भिक्खायरा समुपजिहिंति । "
अर्थः-- विक्रम सं० १५७५ वर्ष होने के बाद कोहंडी अपरिगृहिता व्यंतरीके प्रभावसे भरतक्षेत्र में सूत्रकी निंदा करनेवाले, जिनप्रतिमाकी भक्तिका निषेध करनेवाले, स्वच्छंदाचारी, दुर्बुद्धि, मलिन तथा दुर्गतिगामी ऐसे बहुत भिक्षु उत्पन्न होंगे ।
अब बतलाईये, ऊपर दिखलाए हुए आचारवाले तेरापंथी के साधु हैं कि नहीं ? । उपर्युक्त सभी बातें तेरापंथियों में पाई जातीं हैं, तो फिर भगवान् के कथनानुसार ये शासनके ध्वंस करनेवाले क्यों न कहे जाँय ? इनको निर्मंथ कहने का साहस कौन बुद्धिमान कर सकता है ? । अस्तु इससे भी आगे चलिये । इसी 'वग्गचूलिया ' में प्रतिपादित किया है:
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तणं ते दुवीसं वाणियगा उम्बुकवालवत्था विन्नाव परि णमयित्ता दुट्ठा चिट्ठा कुसीला पर जगा खलुका पुण्वंभवमिच्छतभावाओ जिणमग्गपडिणिया देरगुरुनिंदणया तहारूवाणं समणाणं माहणाणं पढिकुटुकारिणो जिणपन्नत्तं तत्तं अमनमाणा अत्तपसंसिणो बहूणं नरनारीसहस्साणं पुरओ नियत्यप्पाणं नियकप्पियं कुमग्गं आघवेमाणा पनवेमाणा परुवेमाणा जिणप डिमाणं भंजणयाणं हिलता खिसंता निंदिता गरहिता परिहवति चेइयतित्थाणि साहू साहूणी य उट्ठावइस्संति
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अर्थः-- वे बाईस पुरुष, बालभावसे मुक्त, जानकर के, परिणाम करके, दुष्ट, धृष्ट, कुशील, परवंचक, उल्लंठ, पूर्वभवके मिध्यात्व -