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हुआ पाठ ही यह कह रहा है कि- 'उस समय में जनमुनियाँका उदय - पूजा - सत्कार नहीं होगा । क्योंकि जैनमार्ग के उत्थापकोंकी जालमें बहुत लोग फँस जायेंगे । ' देखिए पाठ यह है :
"सामीयरूवियरस मुस्स हीलणे णं भविस्सर, तया णं सुयहीले समणाणं निगंथाणं णो उदय-पूआ- सकारे सम्माणे भविस्सइ "
पापमें प्रवृत्तिकरनेवाले संसार में मनुष्य बहुत होते हैं । और इससे ऐसे कुपंथियोंकी जालमें यदि बिचारे भोले लोग फँस भी जाँय, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।
ऊपरके पाठों से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि- तेरापंथी जो कहते हैं कि वग्गचूलियामें कहे मुताबिक निर्बंथकी पूजा होनेके लिये ही भीखमजी उत्पन्न हुए, यह बिलकूल झूठ बात है । उपयुक्त पाठों से तो यही सिद्ध हुआ कि - शासन के प्रत्यनीक होंगे, ऐसा जो वग्गचूलियामें लिखा गया है, यही भीखमजी और इसके अनुयायी तेरापंथियोंके लिये लिखा गया है । क्योंकि ऊपर की सभी • बातें इन लोगों में पाई जाती हैं।
अब कोई तेरापंथी यह कहे कि - 'वग्गचूलिया के उपर्युक्त पाठोंको हम नहीं मानेंगे | क्योंकि - यह बत्तीससूत्रों में नहीं हैं ।' यह 1 कहना भी बडी अज्ञानताका सूचक है । उदद्य उदय पूजाके लिये तो वग्गचूलियाकी साख देने में कोई हानी न दीख पडी और उसी वग्गचूलिया और पाठोंके लिये तो 'बत्तीस से बाहर' का कारण दिखलाया जाय | यह भी एक प्रकारका दुराग्रह ही नहीं तो और क्या ? |
और भी देखिये । जिस 'ठाणांग' सूत्रको तेरापंथी भी मानते हैं । उसी ठाणांगके दसवें ठाणेके पत्र ५८० में ' वग्गचूलिया ' का नाम आता है। देखिये वह पाठः
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