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"संखेवियदसाणं दस अझयणा प० तं जहा:- खुदियाविमा णपविभत्ती महल्लियाविमाणपविभत्ती अंगचूलिया वग्गचूलिया विवाहचूलिया अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए वेलंधरोवाए वेसमणोववाए | "
जब उनके माने हुए अंगसूत्र में भी नाम आते हुए, यदि वे न मानें, तो समझना चाहिये कि इन लोगोंकी जबरदस्ती अल्लाउद्दीन खिलजी की जबरदस्तीको भी हरा देनेवाली है । अस्तु, न्यायकी बातका निष्पक्षपाती पाठक तो अच्छी तरह समझ ही सकते हैं ।
भीखुचरित्र की पांचमी ढालमें लिखा हैः
आदिनाथ आदेसरजी जिनेश्वरजगतारणगुरु । धर्म आद्य काढी अरिहंत, इण दुसम आराम करम काव्याजी ॥ प्रगव्या आदिजिणंद ज्युं, ए अचरिज अधिक आवंत ||१||
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छिः छिः छिः, कहाँ परमात्मा ऋषभदेव, और कहाँ इस कालका अल्पसत्त्वी भीखम | आदिनाथ भगवान् के साथमें, अधका प्रचार करनेवाले भीखमजीकी तुलना करते हुए लेखकको लज्जा भी न आई ? | यह ऐसी ही तुलना की है, जैसी एक चक्र - वर्ती या जगत् के राजा के साथ में, होली के राजाकी तुलना की जाय । भगवान् ऋषभदेवने तो संसारमें धर्म और व्यवहारकी नींव डाली थीं, परन्तु तुम्हारे भीखमने क्या किया ? | 'दया'
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" दान मूर्तिपूजा ' वगैरह जैनधर्मके खास सिद्धान्तोंको उच्छेदन करने के सिवाय किया ही क्या है ? | क्या इसको आप लोग धर्मप्रवर्तक समझते हो ? | क्या भीखुनजी उत्पन्न होने के पहिले जैनधर्म- जैनशासन चलता ही नहीं था ? । अरे ! हृदय के
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