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भावसे जिनमार्ग के प्रत्यनीक, देवगुरुके निंदक, साधु-माहणके निंदक, जिनतत्त्वों को नहीं माननेवाले, आत्मप्रशंसक, बहुत की-पुरुषोंके आगे स्वकल्पित कमी प्ररूपणा करनेवाले, जिनप्रतिमाके निंदक, हीलणा करने वाले, मूर्तिपूजा - तीर्थ तथा साधुसाध्वी की उत्थापना करने वाले होंगे ।
इसमें कही हुई बातों से भी तेरापंथियों के आचारोंको मिला लीजिये । 'कुशीलता' 'परवंचकता' 'जिनमार्गको प्रत्यनीकता' 'देव - गुरुकी निंदकता ' ' जिनतत्त्वोंको न मानना' 'आत्मप्रशंसा करना ' 'स्त्री-पुरुषोंके आगे कुमार्गकी प्ररूपणा करना' 'जिनप्रतिमा की हेलणा करना' ' मूर्तिपूजा - तीर्थ और सवे साधु-साध्वियों की उत्थापना करना' ये सारी बातें तेरापंथियों में पाई जातीं हैं कि नहीं ? | अव हम क्यों नही कह सकते हैं कि - तेरापंथी जैन हैं ही नहीं । यदि जैन होते तो जैनशास्त्रों में कहे हुए सिद्धान्तों से विपरीत क्यों प्ररूपणा करते ? |
अगर कोई तेरापंथी यह कहे कि - ' ऊपर जो बात कही है, यह तो बाईससमुदाय वाले अर्थात् ढूंढकों के लिये है, हमारे लिये नहीं । ' तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि - तेरापंथी भी तो ढूंढियोंमेंसे निकले हैं। और ढूंढकों में से निकलकर के भी इन्होंने क्या अच्छा काम किया ? उलटे 'दया' और 'दान' का निषेध करके और अंधकार में जा फँसे । फिर क्योंकर यह हो सकता है कितेरापंथी के ऊर, उपर्युक्त पाठ नहीं लग सकता ? | अवश्य लग ही सकता है ।
तेरापंथी लोग इस बातका भी घमंड नहीं कर सकते हैं कि'हमारेमें बने २ धनी लोग हैं।' क्योंकि-वग्गचूलीयाका नीचे दिया