Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 24
________________ यंत ८.० ८०२ लेश्या . श्रीमद् राजचन्द्र पत्रांक छ ।पत्रांक जैन शब्दका अर्थ ७७५ | विपाक, कषाय, बंध आदिके विषयमें - ७९६ जैनधर्मका आशय ७७५ उपाधिमै उपाधि, समाधिमै समाधि-अंग्रेजोंका शानी और वैश्य ७७५ पुरुषार्थकी हीनता ७७६ / ८६४ मोक्षमालाके प्रशावबोध भागकी संकलना ४९८-९ जीवोंके भेद ७७६-७ ३४ वाँ वर्ष जातिस्मरणशान ७७७-८ ८६५ दुःषमकाल आत्माको नित्यताम प्रमाण ७७८ ८६६ 'शांतसुधारस' आयुकर्म ७७८-९ ४६७ " देवागमनभोयान" पातंजलयोगके कर्ताका मार्गानुसारिपना ७५९ ८६८ मदनरेखा अधिकार जिनमुद्रा ८६९ अधिकारीको दीक्षा 'भगवतीआराधना' ८७० बहुत त्वरासे प्रवास ८०२ मोक्षमार्ग | ८७१ शरीरमें अप्राकृत क्रम यशोविजयजीकी छग्रस्थ अवस्था ७८२ | ८७२ वेदनीयका वेदन करने में हर्ष शोक नहीं ८०२ ७८२ | ८५३ अंतिम संदेश (कविता). ८०२-३ बंध परिशिष्ट (१) 'देवागमस्तोत्र' ७८४ 'भीमद् राजचन्द्र' में आये हुए ग्रंथ, ग्रन्थकार आतके लक्षण ७८५ आदि विशिष्ट शन्दोंका संक्षिप्त परिचय ८०५.८४० स्थविरकल्पी और जिनकल्पी ७८६ परिशिष्ट (२) सत्तागत, पार्थिकपाक आदि शब्द 'श्रीमद् राजचन्द्र' में आये हुए उद्धरणोंकी परस्त्रीत्याग ७८८ वर्णानुक्रमसूची ८४१-८५४ केवलशानके विषयमें दिगम्बर परिशिष्ट (३) श्वेताम्बरमें मतभेद 'श्रीमद् राजचन्द्र' के विशिष्ट शब्दोंकी सलेखना ७८९ वर्णानुक्रमणिका ८५५-८६० परिणामप्रतीति परिशिष्ट (४) परीक्षा करनेके तीन प्रकार ७९. 'भीमद् राजचन्द्र' में आये हुए ग्रन्थ "धम्मोमंगलमुकि" और ग्रंयकारोंकी वर्णानुक्रमणिका ८६१-८६५ स्थविरकल्प जिनकल्प ७९१ परिशिष्ट (५) जैनधर्मकी सर्वोत्कृष्टता ७९१-२ | 'भीमद् राजचन्द्र' में आये हुए मुमुक्षुओंके एक समयमें कितनी प्रकृतियोंका बंध ७९२-३ नामोंकी सूची ८६५ आयुका बंध ७९३ परिशिष्ट (६) सत्तासमुद्रत चयोपचय, शून्यवाद आदि | आत्मसिद्धिके पद्योंकी वर्णानुक्रमणिका ८६६-८६७ शब्दोंका अर्थ ७९४-५ | संशोधन और परिवर्तन ८६८-८७४ ७८७ ७८९

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