Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 22
________________ ___७०३ १ १ . श्रीमद् राजचन्द्र पत्रांक पृष्ठ पत्रांक पृष्ठ सम्यक्त्व और केवलज्ञान ७०० ४६१ श्रीडूंगरका देहत्याग ७२५ मतिज्ञान और श्रुतशान ७.१ ७६२ सत्शास्त्रका परिचय ७२५ क्षेत्रसंबंधी विषय ७०२ ७६३ नमो वीतरागाय ७२५ दिगम्बर आचार्योंकी शुख निश्रयनयकी ७६४ श्रीभगवान्को नमस्कार ७२६ मान्यता ७०२ ७६५ द्रव्यमनकी दिगम्बर-श्वेताम्बरोंकी मान्यता ७२६ निगोदमें अनंत जीव ७०२ ७६६ आत्मा अपूर्व वस्तु है ७२६ जीवमें संकोच-विस्तार ७०३ छह दर्शनोंके ऊपर दृष्टांत ७२० थोडेसे आकाशमें अनंत परमाणु ७६७ देह आदि संबंधी हर्ष विषाद करना परद्रव्यका समझना क्यों उपयोगी है ७०३-४ योग्य नहीं विरति और अविरति | *७६८ इस तरह काल व्यतीत होने देना व्यक्त और अव्यक्त क्रियायें ७०६ __ योग्य नहीं ७२८ बंधके पाँच भेद ७०६ *७६९ तीव्र वैराग्य आदि ७२९ कालद्रव्य ७०७ *७७० जिनचैतन्यप्रतिमा ७२९ असंख्यात किसे कहते हैं *७७१ आश्चर्यकारक भेद पद गये हैं नय और प्रमाण *७७२ कारुण्यभावसे धर्मका उद्धार ७३० केवलशान ७०८ *७७३ प्रथम चैतन्यजिनप्रतिमा हो गुणगुणीका भेद ७०९ *७७४ हे काम ! हे मान! ७३० जैनमार्ग *७७१ हे सर्वोत्कृष्ट सुखके हेतुभूत सम्यग्दर्शन सिद्धांत गणितकी तरह प्रत्यक्ष है ७०९-१० *७७६ समाधिमार्गकी उपासना ७३१ राग द्वेषके क्षयसे केवलज्ञान *७७७ " एगे समणे भगवं महावीरे" पुरुषार्थसे सातवें गुणस्थानककी प्राप्ति ७११ । ७७८ सन्यासी गोसाई आदिका लक्षण जैनमार्गमें अनेक गच्छ ७१२ | *७७९ " इणमेव निग्गंयं पावयणं सच्चं” ७३३-४ उदय, उदीरणा आदिका वर्णन करनेवाला ७८० " अहो जिणेहिऽसावज्जा" ७३४ ईश्वरकोटिका पुरुष ७१३ | *७८१ सर्वविकल्पाका, तर्कका त्याग करके ७३५ उपदेशके चार भेद ७१५ *७८२ भगवान्के स्वरूपका ध्यान तैजस और कार्माणशरीर ७१४ ७८३ हे जीव ! संसारसे निवृत्त हो ७३६ धर्मके मुख्य चार अंग ७१५ | ७८४ आत्माविषयक प्रश्नोत्तर ७३६ गुणस्थान ३२ वा वर्ष दिगम्बर श्वेताम्बरों में मतभेद ७१६ | *७८५ ॐनमः कषाय और उसके असंख्यात भेद ७१७७८६ प्रमाद परम रिपु ७३७ घातियाकर्म ७१८ ७८७ शानी पुरुषका समागम ७३७ जीव और परमाणुओंका संयोग ७८८ सद्देव, सगुरु और सत्यास्त्रकी उपासना ७३८ समदर्शिता ७२०-२ *७८९ मैं प्रत्यक्ष निज अनुभवस्वरूप हूँ ७५४ दुःषमकालमें परम शांतिके मार्गकी प्राप्ति २२ ७३८ ७९० प्रायमित्त आदि ७३८ *७५५ केवलज्ञान ७२३ *७९१ प्रवृत्ति-कार्योंके प्रति विरति ७३८ *७५६ मैं केवलशानस्वरूप हूँ | ७९२ पाति अघाति प्रकृतियाँ ७३८-३९ *७५७ आकाशवाणी | ७९३ " नाकेरूप निहाळता" *७५८ मैं एक हूँ असंग हूँ ७२३ ७९४ असद् वृत्तियोंका निरोप ७३९ ७५९ ज्योतिस्वरूप आत्मामें निमग्न होओ७२४ | ७९५ "चरमावर्त हो चरमकरण" ७४० ७६० परम पुरुषोंका नमस्कार ७२४-५: | ७९६ " उवसंतखीणमोहो" ७४० ७३२ ७२३

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