Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 23
________________ विषय-सूची ७४८ ७४८ ७६५ पत्रांक पृष्ठ पत्रांक ७९७ द्रव्यानुयोगकी प्राप्ति ७४० *८३३ (२) स्वरूपयोष ७९८ भव-स्वयंभूरमणसे पार होओ ७४१ |८३४ अवगाहना ७५७ *७९९ स्वपर उपकारके महान् कार्यको कर ले ७४१ ८३५ "जड ने चैतन्य बने द्रव्य तो स्वभाव मिन" ७५७ ८००शानियों का सदाचरण ७४२ ८३६ महामारीका टीका ७५८ ८.१ शास्त्र अर्थात् शास्तापुरुषके वचन ७४२ ८३७ मुनिवरोंकी चरणोपासना ८०२ आत्महितकी दुर्लभता ७४२ ८३८ " धन्य ते मुनिवरा जे चाले समभावे" ७५९ ८०३ अणु और स्कंध ७४३ ८३९ असाताकी मुख्यता ७५९-६० ८०४ मोक्षमालाके विषयमें उपशम क्षायिक आदि भाव ७६१ ८०५ " तरतम योगरे तरतम वासनारे" |८४. 'चतुरांगल हैं हगसे मिल है' ७६२ ८०६ हेमचन्द्र आचार्य और आनंदघन ७४५ | ८४१ भगवद्गीतामें पूर्वापरविरोध ७६२ ८०७ क्या भारतवर्षकी अधोगति जैनधर्मस हुई है ७४६ | ८४२ वर्तमान कालमें क्षयरोगकी वृद्धि ७६२ ८०८ ज्योतिषका कल्पितपना ७४७ | ८४३ यथार्थ शानदशा ७६२ ८०९ वीतराग सन्मार्गकी उपासना ७४७ ८४४ प्रश्नोत्तर ८१० सदाचरणपूर्वक रहना ७४७ परमपुरुषका समागम ७६४ ८११ 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' ८४५ मोक्षमालाके संबंध *८१२ ब्रह्मचर्य ७४८ ८४६ आर्य पुरुषोंको धन्य है ८१३ क्रियाकोष' ८४७ विनयभाक्त मुमुक्षुओंका धर्म *८१४ ईश्वर किसे कहते हैं ७४८ आत्मा का कर्त्तव्य ७६५ ८१५ " मंत्र तंत्र औषध नहीं" ७४८ ८४८ आर्य त्रिभुवनका देहोत्सर्ग ७६६ ८१६ अहो ! सत्पुरुषके वचनामृत ७४९ ८४९ मुक्तिकी सम्यक् प्रतीति ७६१ ८१७ " जेनो काळ ते किंकर थई रो" ७४९ ८५० व्यसन ७६६ ८१८ शान ८५१ शरीर प्रकृति स्वस्थास्वस्थ ७६७ ८१९ स्वरूपनिष्ठवृत्ति ८५२ उत्तरोत्तर दुर्लभ वस्तुएं ७६७ ८२० क्रियाकोष' ८५३ ग्यारहवा आश्चर्य ७६७ ८२१ उपदेश कार्यकी महत्ता ८५४ पननन्दि आदिका अवलोकन ८२२ 'बिना नयन पावे नहीं' ८५५ परमधर्म ७६८ ८२३ परम पुरुषकी मुख्य भक्ति ८५६ " प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्न" ८२४ 'पद्मनन्दि शास्त्र' ८५७ आत्मशुद्धि ७६९ ८२५ सची मुमुक्षुताकी दुर्लभता | ८५८ शरीरमें सबल आसातनाका उदय ७६९ ८२६ क्षमायाचना ७५१ ८५९ " नमो दुर्वाररागादिवैरिवारनिवारिणे' ८२७ सत्पुरुषार्थता ७५२ | ८६. शनीकी प्रधान आशा ८२८ परमशांत श्रुतका मनन ७५३ | ८६१ 'योगशास्त्र' ७७१ ८२९ प्रवृत्ति व्यवहारमें स्वरूपनैष्ठिकताकी कठिनता ७५३ | ८६२ पyषण आराधन ८३० परस्पर एकताका व्यवहार ७५४ ८६३ व्याख्यानसार और प्रश्नसमाधान८३१ प्रतिकूल मार्गमें प्रवास ७७२-७९९ ३३ वाँ वर्ष शैलेशीकरण ८३२ "गुरु गुणधर गणधर अधिक" ७५५ बेदकसम्यक्त्व *८३२ (२)हे मुनियो ७५५ प्रदेशोदय और विपाकोदय ७७३ *८३२ (३) परमगुणमय चारित्र आयुकर्म ७७३-४ ८३३ वीतरागदर्शन-संक्षेप ब्रम्य और पर्याय ७५६

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