Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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पृष्ठ
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३२८
३२६
३४२
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[ ३. ] विषय
पृष्ठ | विषय आत्मा और ज्ञान सर्वथा कर्मत्व रूप
__ अप्रत्यक्षवाद भी खंडित हुआ नहीं बनते क्या?
३२६
रामझना चाहिये ज्ञानादि यदि सर्वथा कर्मत्व रूप नहीं
यदि आत्मा कर्ता और करण ज्ञान ये है तो वे परके लिये भी कर्मत्व
दोनों अप्रत्यक्ष हैं तो क्रिया भी रूप नहीं बनेंगे अर्थात् परके द्वारा
अप्रत्यक्ष होनी चाहिये ? भी ग्रहणमें नहीं पायेंगे
प्रमितिक्रियाको प्रात्मा और ज्ञानसे प्रत्यक्षता पदार्थका धर्म नहीं है
पृथक मानते हैं तो प्रभाकरका जो ज्ञापक कारण स्वरूप करण होता
नैयायिकमतमें प्रवेश होगा है वह अज्ञात रहकर ज्ञापक नहीं
प्रमाता ( प्रात्मा ) आदिकी प्रतीति
मात्र शाब्दिक नहीं है बन सकता
३४३ ज्ञान सर्वथा परोक्ष है तो उसकी सिद्धि
यदि सुखादि हमारे प्रत्यक्ष नहीं है तो किस प्रमाण से करेंगे ?
पराये व्यक्ति के सुखादिक भी प्रत्यक्ष और अनुमान दोनोंसे भी उसकी
हमारे लिये अनुग्रहादि करने लग सिद्धि नहीं हो सकती
जायेंगे जब ज्ञान और प्रात्मा सर्वथा परोक्ष है
सुखादिक प्रत्यक्ष तो होते हैं किन्तु अन्य तब "जिसकी बुद्धि द्वारा जो जो
किसी प्रमाण से प्रत्यक्ष होते हैं अर्थ प्रकट होता है" इत्यादि
ऐसा कहना भी सदोष है ३४५ व्यवस्था कैसे सम्भव है ?
सुखादिको प्रत्यक्ष जानने मात्रसे अनुइन्द्रिय द्वारा जाना हुआ पदार्थ ज्ञानके
ग्रहादि होते हैं तो योगीजनको परोक्ष होनेसे प्रसिद्ध ही रहेगा ३३४ भी वे सुखादिक अनुग्रह करने नेत्रादिज्ञान और मानसज्ञान एक साथ
वाले हो जायेंगे क्यों नहीं होते ?
जब सुखादिक सर्वथा परोक्ष हैं तो परोक्षज्ञानके साथ हेतुका अविनाभाव
उसमें अपना और पराया भेद सिद्ध नहीं होनेसे अनुमानप्रमाण
कैसे?
३४७ भी ज्ञानको सिद्ध नहीं कर सकता ३३७
प्रत्यासत्तिविशेषसे भी प्रापा पराया स्वसंवेदनज्ञानवादका सारांश ३३८-३३६
भेद नहीं हो सकता
३४८ प्रात्माप्रत्यक्षवादका पूर्व पक्ष
३४०
अदृष्ट के कारण विवक्षित सुखादिका आत्माप्रत्यक्षत्ववाद (मीमांसक) ३४१-३५४ आत्मविशेषमें रहनेका नियम भाट्ट के समान प्रभाकर का प्रात्म
बनता है ऐसा कहना भी असत है ३५०
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