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मस्तिष्क सूक्ष्मतम भाग होता है शरीर का सबसे ज्यादा नाजुक, लेकिन उसकी भी कोई अनुभूति नहीं होती। अनुभूति आती है तुम्हारे अस्तित्व से। यह उधार ली जाती है शरीर द्वारा। शरीर की अपनी कोई अनुभूति नहीं होती। जब तुम ध्यान से देखते हो भूख को, तब अगर वह देखना वास्तविक होता है, प्रामाणिक होता है, और तुम बचते नहीं, तो भूख तिरोहित हो जाती है।
महावीर या बुद्ध का उपवास समग्रतया भिन्न उपवास होता है, जैनों और बौद्धों के उपवास से । महावीर का ब्रह्मचर्य समग्र रूपेण भिन्न है जैन मुनियों के ब्रह्मचर्य से महावीर बच नहीं रहे, वे तो मात्र देख रहे हैं। ध्यान से देखने पर वह तिरोहित हो जाता है। साक्षी बनो, तो वह वहां मिलता नहीं । बचाव करने से, वह तुम्हारे पीछे चला आता है। वस्तुतः न ही केवल पीछे आता है, वह तुम्हें आविष्ट करता है।
योग कोई दमन नहीं सिखाता- वह नहीं सिखा सकता। लेकिन योगी हैं जो सिखाते हैं दमन । वे शिक्षक हैं; उन्होंने अपने अंतरतम के अस्तित्व का बोध नहीं पाया है। इसलिये एक भी ऐसा व्यक्ति अस्तित्व नहीं रखता है जो दमन द्वारा बुद्धत्व को उपलब्ध हो सकता हो। ऐसा संभव नहीं है, यह बिलकुल ही संभव नहीं है कोई जागरुकता द्वारा प्राप्त करता है, दमन द्वारा नहीं ।
तीसरा प्रश्न :
ध्यान में अक्सर शारीरिक पीड़ा बनती है चितविक्षेप जब पीड़ा हो रही हो तो क्या आप पीड़ा पर भी ध्यान करने के लिए कहेंगे?
इसी की तो बात कर रहा था मैं। यदि तुम पीड़ा अनुभव करते हो तो उसके प्रति सजग, ध्यानमय रहना, कुछ करना मत। ध्यान सबसे बड़ी तलवार है - यह हर चीज काट देती है। तुम बस ध्यान देना पीड़ा पर ।
उदाहरण के लिए, तुम ध्यान के अंतिम चरण में चुपचाप बैठे हुए होते हो, बिना हिले-डुले, और तुम शरीर में बहुत-सी समस्याएं अनुभव करते हो। तुम्हें लगता है कि टल एकदम सुन्न होती जा रही है, हाथ में कुछ खुजली हो रही है, तुम्हें लगता है शरीर पर चींटियां रेंग रही हैं। बहुत बार देख लिया तुमने और वहां चींटियां हैं ही नहीं वह रेंगाहट भीतर होती है, कहीं बाहर नहीं तो तुम्हें करना क्या होगा? तुम्हें तो लगता है टांग खत्म हो रही है - ध्यानपूर्ण हो जाओ, अपना समग्र ध्यान ही लगा दो उस ओर। तुम्हें खुजली हो रही है ? मत खुजलाना। उससे कोई मदद न मिलेगी। तुम केवल ध्यान दो।